भक्त माता कर्मा बाई का इतिहास | History of bhakt mata karma bai in hindi

भक्त शिरोमणि माता कर्मा बाई Karma ba का जन्म कब और कहाँ हुआ था? इतिहास History of Karma Bai in hindi (karma bai ko khichdo) कर्मा बाई श्री कृष्ण भगवान

History of bhakt mata karma bai in hindi:  समस्त तेली को मेरा नमस्कार ! मित्रों आज हम साहू और तेली समाज की सबसे बड़ी और प्रमुख आराध्य देवी के रूप में मानी जाने वाली भगवान श्री कृष्ण की परम भक्त मां कर्मा बाई (Karma bai) के इतिहास के बारे में जानने वाले है। माता कर्मा बाई का इतिहास कई साल पुराना है। इन्होंने खुद स्वयं अपने हाथों से प्रभु भगवान श्री कृष्ण जी को 'खिचड़ी' खिलाई थी, इस घटना को बाद में इनके उपासको ने "कर्मा बाई को खीचड़ो" कहा है। श्री कृष्ण को खीचड़ी खिलाना और इनकी परम भक्त होना यह सभी माता कर्मा बाई की ही महिमा थी। जो आगे हम जानने वाले है।


कर्मा बाई का इतिहास KARMA BAI KA ITIHAS
माता कर्मा बाई का इतिहास

कर्मा बाई का इतिहास KARMA BAI KA ITIHAS

कर्मा बाई का जन्म कब और कहाँ हुआ था। माता कर्मा बाई साहू समाज की देवी थी इनका जन्म सन् 1017 ई को उत्तर प्रदेश राज्य के 'झांसी नगर' नामक स्थान पर हुआ था, जो प्राचीन समय में झांसी की रानी कही जाने वाली रानी लक्ष्मीबाई का कुरुकक्षेत्र है। 

कर्मा बाई के पिता का नाम क्या था? इनके पिता का नाम रामशाह साहू था। झांसी नगर में साहू और राठौर दोनों प्रकार के लोग निवास करते थे। कर्मा के पिता राम साहू ने कर्मा बाई को साहू वंश सौंपा था और इनकी सबसे छोटी बेटी को राठौर वंश सौंपा था। इस कारण राठौर और साहू दोनों समाज को तेली समाज के वंशज कहा गया है। यही समाज कर्मा बाई के उपासक हूऐ है। 

भक्त माता कर्मा पहले किस नाम से प्रसिद्ध थी? माता कर्मा बाई पहले अपने सतकर्मो के कारण 'कर्मा' के नाम से प्रसिद्ध थी तत्पश्चात बाद में इन्होंने भगवान श्री कृष्ण की भक्ति की जिससे प्रसन्न होकर प्रभु ने स्वयं कर्मा को दर्शन दिया। उस दिन के बाद से समस्त तेली समाज द्वारा कर्मा को 'माता कर्मा बाई' के नाम से प्रसिद्धि मिली थी और आज इन्हें माता कर्मा बाई के नाम से पूजा जाता है।


माता कर्मा बाई का विवाह:

माता कर्मा बाई तो अपना विवाह करना ही नहीं चाहती थी परंतु उनके परिवार वालों और माता-पिता उनका विवाह करने के लिए उत्सुक थे। इसलिए माता कर्मा बाई ने विवाह किया था। कर्मा बाई का विवाह किसके साथ हुआ था? इनके पति का नाम क्या था? माता कर्मा बाई का विवाह पद्मा साहू के साथ हुआ था। ये मध्यप्रदेश के शिवपुरी के रहने वाले थे और ये तेल का भी व्यापार करते थे इनका बहुत बड़ा तेल का व्यवसाय था। कर्मा की चचेरी बहन धर्मा बाई का विवाह राठौर परिवार में हुआ था, ये राजस्थान में नागौर के रहने वाले थे। 

पद्मा साहू कर्मा बाई के पति के पास धन-संपत्ति की को कमी नहीं थी। पद्मा साहू ने अपने तेल व्यवसाय को बढ़ावा देने के लिए बहुत सी सड़कों और पुलो का निर्माण किया था। बीते वर्षों पहले इनके द्वारा बनाए गये निर्माणिक कार्यों में आज भी इनकी सड़के और पुल शिवपुरी में प्रसिद्ध है। शिवपुरी के प्रसिद्ध पुल को 'माता कर्मा बाई' के पुल के नाम से जाना जाता है। 


माता कर्मा बाई की प्रसिद्धि कैसे हुई थी?

कर्मा बाई के पति धनी होने की वजह से दूसरों को जलन होती थी इसलिए पद्मा साहू को फंसाने और उनके तेल व्यवसाय को ठप करने के लिए एक साजिश रची, जिसमें राजा नल के पुत्र ढोला ने आज्ञा दी कि राज्य के तेल के तालाब को पांच दिन में भरा जाएँ, पद्मा साहू दिये गये समय के पश्चात तालाब को तेल से भरने में असफल रहा। उसे सभी तेली समाज के समाने शर्मिन्दा होना पड़ा। 

यह बात माता कर्मा बाई को पता चली तो उन्होंने अपने पति का कष्ट दूर करने के लिए भगवान श्री कृष्ण की भक्ति में अपनी अंतरात्मा एक कर दी और चारों ओर इनकी भक्ती की गुंज फैल उठी। 

तभी इनकी भक्ती और श्री कृष्ण जी की माया से पूरा तालाब तेल से भर गया था। यह बात तुरंत ही सभी तेली समाज में फैल गई और सभी को एक बड़े संकट से छुटकारा मिल गया। इस दिन से ही कर्मा बाई को "माता कर्मा बाई" के नाम से जाना जाता है। तेल के इस तालाब को धर्मा तलैया कहा जाता है और यह कर्मा बाई का धार्मिक संकट है। 

राजा ढोला के बुरे बर्ताव और व्यवहार के कारण कर्मा बाई ने अपने पति देव से कहा कि अब हम इस राज्य के राजा के कष्टो को सहन नहीं कर सकते, यह स्थान शीघ्र ही छोड़ देना चाहिए। लेकिन समस्त तेली समाज तो पहले ही इस राज्य को छोड़कर राजस्थान के नागौर जिले में बच गय थे।


"कर्मा बाई को खीचड़ो" क्या है?

karma bai ko khichdo: कर्मा बाई श्री कृष्ण भगवान की माता के रूप में कैसे प्रसिद्ध हुई? पौराणिक कथाओं और गाथाओं की अनुसार कहा जाता है की माता कर्मा बाई भगवान श्री कृष्ण जी को रोज मेवे और मिठाई खिलाती थी। 

लेकिन एक बार इन्होंने मेवो की जगह स्वयं अपने हाथों से बनी खिचड़ी पकाकर खिलाई तो प्रभु को खिचड़ी बहुत ही स्वादिष्ट और अच्छी लगी तब वे माता कर्मा बाई से बोले हे मां यह खिचड़ी बहुत ही स्वादिष्ट और अच्छी है आप मुझे रोज यही खिचड़ी खिलाया करो। 

यह सुनकर माता कर्मा बाई रोज अपने प्रभु के लिए खिचड़ी बनाकर लाती थी और प्रभु भगवान श्री कृष्ण जी इसे बड़े ही चाव खाते थे। इस प्रकार इस दयनीय लीला को 'कर्मा बाई को खीचड़ो' कहा जाता है। 

karma bai ko khichdo || कर्मा बाई को खीचड़ो


श्री भगवान जगन्नाथ के मंदिर में माता कर्मा बाई की खिचड़ी का भोग क्यूँ लगते है?

माता कर्मा बाई जगन्नाथपुरी में रोज सुबह-सुबह जल्दी उठकर बिना नहाए-धोएँ श्री कृष्ण जी की भूख मिटाने के लिए खिचड़ी बनाती थी और कृष्ण जी को बाद खिलाती थी। एक दिन श्री कृष्ण के मंदिर का साधु कर्मा के यहाँ मेहमान बनकर आया। साधु ने माता कर्मा बाई को यह सब करते हुए देख लिया। साधु ने कर्मा से कहा यह गलत है आपको ऐसा नहीं करना चाहिए पाप लगता है। 

कर्मा बाई फिर रोज नहा कर खिचड़ी बनाने लगी। जिससे खिचड़ी पकाने में देरी हो जाती थी और श्री कृष्ण को खिचड़ी खिलाते समय ही मंदिर के द्वारा खुल जाते है। साधु ने जब द्वार खोलकर देखा तो श्री कृष्ण जी के मुख पर खिचड़ी लगी हुई थी। यह देखकर फिर साधु ने कर्मा बाई से कहा आप पहले जैसे खिचड़ी खिलाती थी वैसे ही बनाकर खिलाओ। इस दिन के बाद से ही श्री भगवान जगन्नाथ के मंदिर में सबसे पहले माता कर्मा बाई की खिचड़ी का भोग लगाया जाता है। 


कर्मा बाई की भक्ति:

माता कर्मा बाई के पिता एक महान भक्त थे। इन्हीं से प्रभावित होकर कर्मा बाई ने अपनी भक्ती की सुरुआत की थी। कर्मा बाई की आवाज बहुत ही प्रिय और मधुर थी। ये अपने बाल्यावस्ता से ही मीरा बाई की तरह सुरीली आवाज में श्री कृष्ण जी के गुण-गान करती थी। शायद इसी कारण श्री कृष्ण भगवान इनकी मधुर वाणी और इनके छंद कण्ठ से प्रभावित होते थे। माता कर्मा ने अपने भक्ती में कोई कमी नहीं रखी।


कर्मा बाई की मृत्यु कब हुई:

कहा जाता है माता कर्मा बाई की मृत्यु 1634 ई में हुई लेकिन यह समय सत्य है या गलत इसका अभी तक कोई पता नहीं लगा है। कर्मा बाई की मृत्यु जगन्नाथपुरी में हुई थी। क्योंकि जगन्नाथपुरी के मंदिर में सर्वप्रथम इनकी याद में इनका भोग लगाया जाता है। 

इस प्रकार माता कर्मा बाई ने अपने जीवन में भगवान श्री कृष्ण की भक्ति में मोक्ष की प्राप्ति की थी। उनकी माता बनकर उनका पालन-पोषण किया और संसार में भक्ती की महारत हासिल की। माता कर्मा बाई की ऐसी महान भक्ती को मेरा सत-सत नमन। 

आज की जानकारी में बस इतना ही मेरे प्रिय दोस्तों और माता कर्मा बाई के महान युतो उम्मीद करता हूँ की आपको माता कर्मा बाई का इतिहास संबंधी जानकारी अच्छी लगी होगी। साथ ही आपको यदि मेरी जानकारी पसंद आय तो अपने दोस्तों में जरूर शेयर करें। धन्यवाद।


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Disclaimer:

यह जानकारी कोई हमारी निजी राय नहीं है यह हमनें ऐतिहासिक तथ्यों से प्राप्त की है आप चाहे तो इससे कुछ Knowledge ले सकते है। 


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