Guru Jambheshwar Bhagwan Photo, Bhajan, गुरु जम्भेश्वर फोटो, जीवन परिचय व भजन, बिश्नोई संप्रदाय पंथ के संस्थापक गुरु जम्भेश्वर भगवान का जन्म राजस्थान
Guru Jambheshwar Bhagwan | Jambheshwar Photo | Jambheshwar Bhajan | गुरु जम्भेश्वर फोटो, जीवन परिचय व भजन
गुरु जम्भेश्वर भगवान बिश्नोई पंथ के संस्थापक थे. उन्हें जाम्भोजी नाम से भी जाना जाता है. उनका मानना था की ईश्वर सर्वोपरि है वे सबके लिए बराबर है. पेड़ पौधों, वन व वन्यजीवों की सुरक्षा करना हमारा दायित्व है क्योंकि उनमे भी जीव होता है. जिसके लिए गुरु जम्भेश्वर जी ने 29 नियम बनाये थे. इनके तहत बिश्नोई संप्रदाय की स्थापना की गई थी.
Jambheshwar Photo | गुरु जम्भेश्वर फोटो
गुरु जम्भेश्वर भगवान का जीवन परिचय व इतिहास Guru Jambheshwar Bhagwan ka Jivan Parichay
Guru Jambheshwar Bhagwan - बिश्नोई संप्रदाय पंथ के संस्थापक गुरु जम्भेश्वर भगवान का जन्म राजस्थान के नागौर जिले में परगने के पीपासर नामक ग्राम में सन् 1451 विक्रम संवत् 1508 भाद्रपद अष्टमी सोमवार को हुआ था. उनका मूल नाम धनराज था. उनके पिता का नाम ठाकुर लोहटजी और माता का नाम हंसा कंवर था. ठाकुर लोहटजी मुख्य रूप से एक किसान थे. गुरु जम्भेश्वर भगवान हिन्दू समुदाय के वंशज थे. वे शुरुआती सात वर्ष तक कुछ भी बोल नहीं पाये अर्थात मौन रहे. उनका प्रतिक हरे वृक्ष है और वे हरे वृक्षों को पूजते थे.
उनका संबंध बिश्नोई संप्रदाय से हैं. वे हमेशा 'हरी' नाम का ही वाचन करते थे. वे मुख्य रूप से शुद्ध शहाकारी थे तथा सभी को शहाकारी रहने और शहाकारी भोजन करने का संदेश देते है. वे पेड़-पौधों और समस्त वन्य जीवों की रक्षा के लिए प्रेरित करते थे. वे किसी पेड़ को काटने या किसी जीव को मारना पाप मानते थे. उन्हें गायो को पालना अच्छा लगता था जिसके चलते इन्होंने लगभग 27 वर्ष तक गाय पालने का काम किया. सभी वन्य जीव और पशु पक्षी उन्हें प्रिय लगते थे.
गुरु जम्भेश्वर भगवान द्वारा बिश्नोई संप्रदाय पंथ की स्थापना - गुरु जम्भेश्वर भगवान ने अपनी 34 वर्ष की आयु में सन् 1508ई में बिश्नोई पंथ की स्थापना की थी. बिश्नोई संप्रदाय हिन्दू धर्म का व्यावहारिक और साधे विचार वाला संप्रदाय है. इस शब्द की उत्पत्ति वैष्णवी शब्द से हुई है. जम्भेश्वर शब्दवाणी का अर्थ बैष्णवी शब्द से विष्णु के अनुयायी से है. बिश्नोई समाज पेड़ पौधों और समस्त वन्य जीवों की रक्षा करता है. बिश्नोई शब्द बिस+नोई से मिलकर बना है. बिस का मतलब 20 और नोई का मतलब 9 से है. जिसमें 20 और 9 को जोड़ने पर 29 आता है. बिश्नोई समाज के कुल 29 नियम है. बिश्नोई संप्रदाय के लोग खेजडी को अपना पवित्र पेड़ मानते हैं. ये समाज प्रकृति प्रेमी भी थे.
गुरु जम्भेश्वर भगवान की शब्दवाणी - बिश्नोई शब्दावल भावार्थ गुरु जम्भेश्वर ने अपने जीवन में अनेक शब्द कहें लेकिन इनके 120 शब्द अभी भी प्रचलित है. इन शब्दों को वर्तमान में जम्भवाणी या शब्दवाणी के नाम से जाना जाता है. गुरु जम्भेश्वर ने बिश्नोई समाज की स्थापना कर धर्म सहिंता के 29 नियम बनाए जो नैतिकता, पर्यावरण और मानवीय मूल्यों से संबंधित है. इनके शब्दवाणी को जम्भवाणी, जम्भोजी की वाणी, जम्भोजी की शब्द वाणी, बिश्नोई शब्दवाणी आदि अन्य नामों से जाना जाता है. गुरु जम्भेश्वर की शब्दवाणी की भाषा राजस्थानी मारवाड़ी है. अंग्रेजी में इस शब्दवाणी का भावार्थ पृथ्वीराज बिश्नोई ने किया था और हिन्दी में हीरालाल माहेश्वरी, आचार्य श्री कृष्णानंद जी, कृष्ण लाल खीचड़, सूर्यशंकर पारिक व अन्य बिश्नोई ज्ञाताओं ने सहज और सरलता से किया.
बिश्नोई पंथ का खेजड़ली बलिदान - खेजड़ली ग्राम में बिश्नोई समाज के साथ 1730 को जोधपुर में एक घटना हुई जिसे बाद में "खेजड़ली बलिदान" नाम दिया गया. मारवाड़ के राजा के लिए महल बनाने हेतु राजा अपने सैनिकों को आदेश देता है. मारवाड़ के सैनिकों द्वारा आदेश का अनुपालन करते हुए यह हत्याकांड किया गया. इस बलिदान में अमृता देवी के नेतृत्व में खेजड़ी की रक्षा के लिए तत्पर बिश्नोई समाज के 363 लोगों ने अपने प्राणों का बलिदान दिया. यह पूरे विश्वभर में वृक्षों को बचाने के लिए अद्वितीय और सर्वोच्च बलिदान माना जाता है. ये बलिदानी लोग कोई और नहीं बल्कि बिश्नोई समाज पंथ के ही थे.
गुरु जम्भेश्वर भगवान की एतिहासिक प्रष्टभूमि - गुरु जम्भेश्वर भगवान ने 29 नियमों की दीक्षा एवं पाहल देकर 1508 में बिश्नोई समाज की स्थापना की. वि.सवत 1542 में गुरु जम्भेश्वर की कीर्ति चारों ओर फैल गई थी. जिसके चलते उसी साल राजस्थान में भयंकर अकाल पड़ा उस अकाल में भगवान जम्भेश्वर ने अकाल पीड़ितों की अन्न और धन से भरपूर मदद की. उस समय गुरु जम्भेश्वर ने सम्भराथल धोरे पर एक विराट यज्ञ का आयोजन किया. बिश्नोई समाज में दीक्षित होने वाले अधिकांश व्यक्ति जाट थे. वन्य जीवों की रक्षा के लिए "बिश्नोई टाईगर फोर्स" संस्था बनाई गई. गुरु जम्भेश्वर भगवान की पर्यावरण संरक्षण एवं वन्य जीव संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका है.
विश्नोई संप्रदाय के 29 नियम -
- अमावस्या का व्रत रखना
- निंदा नहीं करनी
- तीस दिन तक सूतक रखना
- वाद-विवाद का त्याग करना
- झूठ नहीं बोलना
- हरा वृक्ष नहीं काटना
- जीव दया पालनी
- शील का पालन करना व संतोष रखना
- पानी, ईंधन और दूध को छानकर प्रयोग में लेना
- द्विकाल संध्या उपासना करना
- बाह्य व आंतरिक पवित्रता रखना
- पांच दिन ऋतुवन्ती स्त्री का गृह कार्य से पृथक रहना
- निष्ठा व प्रेम पूर्वक हवन करना
- भगवान विष्णु का भजन करना
- नीला वस्त्र व नील का त्याग करना
- संध्या समय आरती और हरिगुण गाना
- चोरी नहीं करनी
- थाट अमर रखना
- काम, क्रोध आदि अजरों को वश में करना
- क्षमा दया धारण करना
- रसोई अपने हाथ से बनानी
- वाणी विचार कर बोलना
- तंबाकू का सेवन नहीं करना
- मांस नहीं खाना
- बेल बधिया नहीं कराना
- प्रतिदिन सवेरे स्नान करना
- अमल नहीं खाना
- भांग नहीं पीना
- मद्यपान नहीं करना
गुरु जंभेश्वर की मृत्यु (Death of Guru Jambheshwar) - 1536 ईस्वी में 85 वर्ष की आयु में गुरु जंभेश्वर भगवान की लालासर ग्राम में मृत्यु हो गई. वही पर तालवा नामक गांव के निकट गुरु जांभोजी भगवान की समाधि दी गई थी. जिस स्थान पर गुरु जंभेश्वर भगवान की समाधि दी गई थी आज उस स्थान को "मुकाम" के नाम से जाना जाता है. हर साल दो बार फागुन और अश्विन की अमावस्या को यहां मेला भी भरता है. इस धाम को जाम्भोलाव धाम से भी जाना जाता है. यह धाम बिश्नोई संप्रदाय का प्रमुख तीर्थ स्थल है. यह जोधपुर राजस्थान में जाम्भा गांव में स्थित है. यहां गुरु जम्भेश्वर भगवान का मंदिर एक जम्भ सरोवर तालाब भी है.
गुरु जम्भेश्वर भजन | jambheshwar bhajan
Guru Jambheshwar Bhagwan FAQ in hindi
जांभोजी महाराज कौन थे?
Ans. बिश्नोई संप्रदाय पंथ के संस्थापक
जम्भेश्वर का जन्म कब हुआ था?
Ans. विक्रमी संवत् 1508 सन 1451 को नागौर परगने के पीपासर गांव में
जंभेश्वर भगवान के पिता जी का क्या नाम था?
Ans. लोहट जी पंवार
बिश्नोई समाज के संस्थापक कौन थे?
Ans. गुरु जम्भेश्वर भगवान
जांभोजी ने समाधि कब ली?
Ans. 1536 ईस्वी में
जाम्भोजी की मृत्यु कब हुई?
Ans. 1536 ईस्वी में 85 वर्ष की आयु में
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