राजा दाहिर सेन का इतिहास और जीवन परिचय - Raja Dahir Sen History & Biography in Hindi

राजा दाहिर सेन का इतिहास और जीवन परिचय - Raja dahir sen history & biography in hindi जन्म - 663 ईस्वी, धर्म - हिंदू धर्म,पत्नी - रानी बाई,मृत्यु - 772

नमस्कार दोस्तों स्वागत आपका आज की इस ऐतिहासिक जानकारी में, दोस्तों आज आप इस लेख के माध्यम से "राजा दाहिर सेन का इतिहास और जीवन परिचय जानने वाले हैं" जी हां दोस्तों यदि आप जानना चाहते हैं कि आखिर राजा दाहिर सेन कौन थे? Raja dahir sen history & biography in hindi तो आप इस लेख में शुरु से लगाकर अंत तक बने रहिये इसमे आप राजा दाहिर सेन का इतिहास, जीवन परिचय, राजधानी, बलिदान दिवस, राजा दाहिर और पैगंबर मुहम्मद आदि के बारे में जान पायेंगे.


राजा दाहिर सेन का जीवन परिचय - Raja Dahir Sen Biography in Hindi

शासनकाल - 663 से 772 ईस्वी

राज्य - सिंध 

नाम - दाहिर सेन 

पूरा नाम - राजा दाहिर 

जन्म - 663 ईस्वी 

जन्म स्थान - सिंध नगर 

धर्म - हिंदू धर्म

माता का नाम - रानी सुहानादी 

पिता का नाम - राय साँसी

पत्नी का नाम - रानी बाई

संतान - सूर्य देवी, प्रेमल देवी, जोध देवी 

मृत्यु - 772


राजा दाहिर सेन का इतिहास - Raja dahir sen history in hindi 

71 ई. में सिंध के समुद्री डाकुओं द्वारा स्थानीय बन्दरगाह देवल पर अरबी जहाज को लूट लिया गया. उस समय सिंध में दाहिर नामक राजा का शासन था. राजा दाहिर के राज्य की सीमाएँ उत्तर में कश्मीर और पूर्व में प्रतिहारों के कन्नौज राज्यों तक फैली हुई. पश्चिम में उनकी सीमाओं के अंतर्गत मकरान या बलूचिस्तान नाम का प्रदेश सम्मिलित था. राजा दाहिर द्वारा अरबी जहाज लूटने की घटना का उपयुक्त स्पष्टीकरण नहीं दिए जाने को तात्कालिक कारण बनाकर ईराक के गवर्नर हज्जाज ने खलीफा वलीद से अनुमति प्राप्त कर सिंध पर आक्रमण के लिए सेना भेज दी.

प्रारम्भिक दो अभियानों में हज्जाज के सेनापतियों उबैदुल्ला तथा बुदैल को असफलता का सामना करना पड़ा और दोनों राजा दाहिर की सेना द्वारा मौत के घाट उतार दिए गये. इसके बाद हज्जाज ने अपने बचेरे भाई व दामाद सत्रह वर्षीय नवयुवक मुहम्मद बिन कासिम को तत्काल ही सिंध भेजा देवल पहुँचते ही उन्होंने नगर का घेरा डालने की तैयारी की परन्तु बीच में पत्थर की सुदृढ़ दीवार से घिरा हुआ 120 फुट ऊँचा एक विशाल मंदिर आ गया. मंदिर का एक देशद्रोही पुरोहित अरबों से जा मिला और उसने सूचना दी कि जब तक ताबीज बंधा वह लाल झण्डा मंदिर पर लहराता रहेगा, तब तक नगर को जीता नहीं जा सकता.

शीघ्र ही मुहम्मद कासिम ने उस ध्वज को गिरा डाला जिससे ध्वज गिरने से नगर की रक्षा करने वाले सैनिक हतोत्साहित तथा अरब सेना उत्साहित हुई. कासिम ने नगर पर अधिकार करने के बाद 17 वर्ष से अधिक अवस्था वाले तमाम लोगों को मार डाला तथा छोटे बालक व स्त्रियों को कैद कर लिया. मंदिर की लूट में काफी सामान हाथ लगा जिसका पांचवां हिस्सा हज्जाज के पास भेज दिया गया और शेष सेना में बांट दिया. इसके बाद उसने आगे बढ़कर निरून, सेहवान और सीसम पर भी अपना अधिकार कर लिया. अंत में 20 जून 712 ई. को रावर के युद्ध में भारतीय और अरबी सेनाओं के बीच भयंकर संघर्ष हुआ.

राजा दाहिर शत्रुओं को काटता हुआ अपने साथियों सहित अरब सेना के मध्य भाग तक पहुँच गया. जंहा हाथी पर सवार दाहिर सेन अपनी सेना के साथ डटकर मुकाबला कर रहा था अचानक ही एक तीर उनके शरीर में आ घुसा और वह वीरगति को प्राप्त हुए. इसके बाद दाहिर की पत्नी रानी बाई ने किले की रक्षा का प्रयत्न किया किन्तु वह इसमें असफल रहने पर उसने जौहर कर अपने सम्मान की रक्षा की. रावर की विजय के बाद कासिम ने ब्राह्मणवाद पर अधिकार कर लिया. यहाँ कासिम को राजा दाहिर की दूसरी रानी लाडी और उसकी दो पुत्रियों सूर्यदेवी व परमलदेवी हाथ लगी. 

ब्राह्मणवाद के बाद कासिम ने सिंध की राजधानी आरोर (आलोर) और मुल्तान पर भी अधिकार कर लिया. मुल्तान विजय भारत में अरबों की अंतिम विजय थी. यहाँ उनको इतना धन हाथ लगा कि उन्होंने मुल्तान का नाम बदलकर 'स्वर्णनगर' रख दिया.


राजा दाहिर और पैगंबर मुहम्मद -

इतिहासकार गौरीशंकर हीराचन्द ओझा के अनुसार राजा दाहिर सेन की राजकुमारियों का रूप-लावण्य देखकर खलीफा ने उनके सामने प्रेम की याचना की. लेखिन वे दोनों अपने पिता की मृत्यु का बदला लेना चाहती थी. इस कारण मौका देखकर उन्होंने खलीफा से शिकायत की कि हम आपकी शैय्या पर पैर रखने योग्य नहीं हैं, यहाँ भेजने के पहले ही कासिम का कौमार्य भंग कर दिया. इतना सुनते ही खलीफा आगबबूला हो गया और उसने तत्काल आज्ञापत्र लिखवाया कि इसे देखते ही मुहम्मद बिन कासिम को बैल के चमड़े में जीवित सिलाई कर हमारे पास भेज दो. 

हुक्म का उसी समय तालमेल हुआ और मार्ग में तीसरे दिन कासिम मर गया और उसी अवस्था में खलीफा के पास पहुंचाया गया. खलीफा ने उन दोनों राजकुमारियों को बुलवाया और उन्हीं के सामने बैल का चमड़ा खुलवा कर कासिम का शव उन्हें दिखलाया और कहा कि खुदा के खलीफा का अपमान करने वालों को मैं इस प्रकार दण्ड देता हूँ. कासिम का मृत शरीर देखते ही राजकुमारी के मुख पर अपना मनोरथ सफल होने की प्रसन्नता छा गई, परन्तु साथ ही मंद मुस्कराइट और काटाक्ष के साथ उसने खलीफा को कहा कि ऐ' खलीफा! कासिम ने हमारा सतीत्व नष्ट नहीं किया.

उसने कभी आंख उठाकर भी हमें कुदृष्टि से नहीं देखा परन्तु उसने हमारे माता, पिता, भाई और देशबंधुओं को मारा था इसलिए उससे अपना बदला लेने के लिए हमने यह मिथ्या दोष उस पर लगाया था. वीर बालिकाओं के ये वचन सुनते ही खलीफा सन्न हो गया और उन दोनों को जिंदा जलवा दिया. मुहम्मद बिन कासिम के लौटने के बाद 715 ई में सिंध में हिन्दू राजाओं का पुनर्जागरण हुआ. बालादूरी के अनुसार "अल-हिन्द के राजाओं ने अपने साम्राज्य में वापसी की और हुल्लीशाह (दाहिर का पुत्र जयसिंह) बाम्हाणाबाद लौट कर मुखिया के पद पर आसीन हो गया." 

तारीख-ए-मासूमी में भी लिखा है कि मुहम्मद बिन कासिम की मृत्यु के कुछ समय बाद ही भारत के लोगों ने विद्रोह का शंखनाद कर अरबी शासन को उखाड़ फेंका. जयसिंह ने अपनी स्वाधीनता के लिए सिंध के सूबेदार जुनैद के साथ संघर्ष किया और लड़ता हुआ मारा गया.


भारत पर सम्पर्क का अरबों पर प्रभाव -

अरबों की सिंध विजय का राजनीतिक परिणाम सिर्फ यह निकला कि सिंध का संबंध कुछ समय के लिए भारत से टूट गया और वह इस्लामी साम्राज्य का हिस्सा बन गया किन्तु सांस्कृतिक दृष्टि से भारत ने अरबों पर विजय प्राप्त की. भारतीय दर्शन, विज्ञान, गणित चिकित्सा और ज्योतिष ने अरबों को बहुत प्रभावित किया. उन्होंने कई भारतीय संस्कृत ग्रंथों का अरबी भाषा में अनुवाद करवाया जिनमें ब्रह्मगुप्त का 'ब्रह्म स्फुट सिद्वान्त' तथा 'खण्ड खाण्ड्यक' आदि अधिक प्रसिद्ध है. 

अरब के लोगों ने अंक, दशमलव पद्धति, चिकित्सा व खगोलशास्त्र के कई मौलिक सिद्धान्त भारतीयों से सीखे और कला तथा साहित्य के क्षेत्र में भी भारतीय पद्धतियों को अपनाया. भारतीय दर्शन, साहित्य व कला की अनेक बातें अरबों के माध्यम से यूरोप के लोगों ने सीखी. इस प्रकार अरबों द्वारा भारतीय ज्ञान पश्चिमी देशों में पहुँचने में सफल रहा.


अरबो की सफलता के कारण -  

सिंध पर अरबों की सफलता के कई कारण थे. राजा दाहिर के शासन में सामान्य वर्ग असंतुष्ट था. राज्य के अधिकांश भागों में असंतोष और अव्यवस्था व्याप्त थी. इस कारण अरब आक्रमण के समय उन्हें जनसहयोग नहीं मिल पाया. राजा दाहिर सेन स्वयं जनता में अप्रिय था क्योंकि उनका पिता राज्य का वास्तविक अधिकारी नहीं था. जिससे समकालीन भारतीय शासकों में आपसी तालमेल, सौहार्द तथा सहयोग की भावना नही थी और व्यक्तिगत स्वार्थ पनप रहे थे.

सैनिक शक्ति बढ़ाने और विदेशी आक्रमण की संभावना को ध्यान में रखकर किसी भी राज्य ने अपनी सैन्य शक्ति को बढ़ाने की कोशिश नहीं की थी. सैनिक गतिविधियों का उत्तरदायित्व मात्र राजपूतों के कंधों तक सिमट गया जो पारस्परिक द्वेष और ईर्ष्या के कारण आपस में लड़ने में लगे थे. मुहम्मद बिन कासिम की योग्यता साहस तथा नेतृत्व शक्ति के साथ अरबों में मजहबी प्रचार के जोश, धन प्राप्ति की प्रबल इच्छा और खलीफा से मिलने वाले सैनिक सहयोग ने भी उनकी सफलता में अपना योगदान दिया.


Raja Dahir Sen History & Biography FAQ in hindi

Q. सिंधु सेना का पराक्रमी राजा कौन था?

Ans. राजा दाहिर सेन 

Q. मोहम्मद बिन कासिम की मृत्यु कैसे हुई?

Ans. दम घुटने से

Q. सिंधु देश का राजा कौन था?

Ans. दाहिर सेन सन्‌ 679 में सिंध के राजा बने थे

Q. राजा दाहिर ने किन्हें शरण दी थी?

Ans. उमय्यद खलीफाओं के अल्लाफी दुश्मनों ने राजा दाहिर के दरबार में शरण ली

Q. राजा दाहिर ने अपनी बहन से शादी क्यों की?

Ans. अपनी गद्दी बचने के लिये

Q. राजा दाहिर की पत्नी का नाम क्या था?

Ans. रानी बाई

Q. महाराजा दाहिर सेन का बलिदान दिवस कब मनाया जाता है?

Ans. 16 जून को 


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