लोक देवता वीर गोगाजी का पूरा इतिहास और जीवन परिचय इन हिंदी - Veer Gogaji History & Biography in Hindi, गोगाजी, जाहिर वीर, गुग्गा वीर, जाहर पीर, मण्डलि
लोक देवता वीर गोगाजी का पूरा इतिहास और जीवन परिचय इन हिंदी - नमस्कार दोस्तों कैसे स्वागत हो आप, स्वागत है आपका आज की इस ऐतिहासिक जानकारी में, दोस्तों आज हम आपको यहाँ इस लेख में राजस्थान के प्रसिद्ध लोक देवता जाहरवीर गोगाजी के बारे में बता रहे है. यदि आप वीर गोगाजी से जुड़ी जानकारी चाहते हैं तो आप हमारे साथ शुरू से लगाकर अंत तक बनें रहिए क्योंकि दोस्तों यहाँ हमने (Veer Gogaji History & Biography in Hindi) जाहरवीर गोगाजी का पूरा इतिहास इन हिंदी में दिया हुआ है. यहाँ से आप गोगाजी का संपूर्ण इतिहास, जीवन परिचय व कथा आदि जान सकते हैं.
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Veer Gogaji History & Biography in Hindi |
वीर गोगाजी का ऐतिहासिक परिचय - Veer Gogaji History & Biography in Hindi
नाम: जाहरवीर गोगाजी
अन्य नाम: गोगाजी चौहान, जाहरपीर, गोगापीर, गुग्गा
जन्म: विक्रम संवत् 1003
जन्म स्थान: 'ददरेवा' राजस्थान के चूरु जिले में
पिता का नाम: जेवरसिंह चौहान
माता का नाम: रानी बाछल देवी चौहान
दादा का नाम: उमर सिंह चौहान
पत्नी का नाम: केलमदे
गुरु का नाम: गोरखनाथ जी
गोगाजी का मेला: भाद्रपद कृष्णा नवमी (गोगा नवमी) को
गोगा जी का थान: खेजड़ी के वृक्ष के नीचे
गोगाजी का मंदिर: गोगामेड़ी (धूरमेढ़ी-नौहर) हनुमानगढ़
वीर गोगाजी का जीवन परिचय - Biography of Veer Gogaji in Hindi
सम्राट पृथ्वीराज चौहान के बाद चौहान वंश में सबसे प्रसिद्ध व प्रतिभाशाली राजा जाहरवीर गोगाजी थे. जिन्हें लोककथाओं व लोकमान्यताओं के अनुसार साँपो के देवता, जाहरवीर और नागराजजी का अवतार माना जाता है. वीर गोगाजी राजस्थान के प्रमुख व प्रसिद्ध लोकदेवता है जिन्हें लोकदेवता के नाम से पीर के रूप में जाना जाता है. वीर गोगाजी एक ऐसे देवता है जिन्हें हिन्दू व मुसलमान दोनों धर्मों के परिजनों द्वारा पूजा जाता है. उनके भक्तों की गणना करोड़ों में है. भगवान गोगाजी के सभी भक्त उन्हें केवल चमत्कारी और सिद्ध व्यक्ति के रूप में जानते है.
आज के समय में वीर गोगाजी के वास्तविक इतिहास से बहुत ही कम लोग परिचित हैं. क्योंकि इतिहासकारों व विद्वानों द्वारा गोगाजी को पराक्रमी, धार्मिक, शौर्यवीर व उच्च जीवन के आदर्शों का चिन्ह माना है. यही नहीं कुछ इतिहासकारों ने ऐसा भी दावा किया है कि जाहरवीर गोगाजी अपने पुत्रों सहित महमूद गजनबी से आक्रमण करने गए उस समय युद्ध करते हुए वे शहीद हो गए थे. लेकिन फिर भी इन तथ्यों से वीर गोगाजी के जीवन की वास्तविकता सिद्ध नहीं होती. इसलिए आज हम उनकी जीवन शैली की ऐतिहासिक घटनाओं पर प्रकाश डालेंगे.
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गोगाजी की जीवनी - वीर गोगाजी का जन्म राजस्थान के चुरू जिले में विक्रम संवत् सन 1003 में ददरेवा नामक ग्राम में हुआ था. गोगाजी के पिता का नाम जेवरसिंह था और माता का नाम बाछल देवी था. गोगाजी के जन्म को लेकर ऐसा माना जाता है कि वीर गोगाजी का जन्म गुरु गोरखनाथ के आशीर्वाद से हुआ था. वीर गोगाजी को नागों के देवता होने का वरदान था. लोकमान्यताओं के आधार पर वीर गोगाजी को साँपो के देवता के रूप में पूजा जाता है. उन्हें लोग गोगाजी, जाहिर वीर, गुग्गा वीर, जाहर पीर, मण्डलिक आदि नामों से पुकारते है.
वीर गोगाजी गुरु गोरखनाथ के प्रमुख शिष्य थे. गोगाजी को अधिकांश लोग राजस्थान के लोक देवता के रूप में पूजते है. गोगाजी के माता पिता निःसंतान थे और उन्हें संतान प्राप्ति के सभी रत्न करने के बाद भी संतान प्राप्त नहीं हुई. ऐसे में वे बहुत ही दुःखी थे तब उन्हें पता चला की भगवान गुरु गोरखनाथ निःसंतान स्त्रियों को संतान प्राप्ति का आशीर्वाद देते हैं जिससे निःसंतान स्त्रियों को संतान प्राप्ति होती है. यही जानकार राजा जेवरसिंह और रानी बाछल देवी संतान प्राप्ति के लिए भगवान गुरु गोरखनाथ जी की शरण में गए. उस समय गुरु गोरखनाथ जी 'गोगामेड़ी' के एक टीले पर तपस्या कर रहे थे.
गुरु गोरखनाथ जी ने बाछल देवी को पुत्र प्राप्ति के लिए वरदान दिया तथा साथ ही उन्हें गुगल नामक एक फल प्रसाद के रूप में खाने के लिए दिया. वह प्रसाद खाकर गोगाजी की माता रानी बाछल देवी गर्भवती हो गई जिनकी कोख से बाद में "वीर गोगाजी" का जन्म हुआ. इस प्रकार गुरु गोरखनाथ जी के आशीर्वाद से और उनके द्वारा दिए गए फल को खाने से रानी बाछल देवी की कोख से वीर गोगाजी का जन्म होता है तथा बाद में गुगल फल के नाम से उनका नाम गोगाजी पड़ा. जिन्हें राजस्थान के प्रमुख छह सिद्धों में समय की दृष्टि से प्रथम व सर्वश्रेष्ठ माना गया है.
ददरेवा राजस्थान के चुरू जिले में स्थित है. यह स्थान गोगाजी का मुख्य जन्म स्थान है. यह स्थान जयपुर से लगभग 250 की मी दूर है. इस स्थान पर आज भी गोगाजी के घोड़े का अस्तबल है तथा सैकड़ों वर्ष बीत चुके लेकिन उनके घोड़े की रकाब अभी भी वहीं पर स्थित (विद्यमान) है गुरु गोरखनाथ का आश्रम भी ददरेवा में ही बनाया गया है. इस स्थान पर बनें मंदिर पर कई लोग आते है तथा यहां एक पुराना गढ़ है जो सन् 1509 ई. से 1947 तक बीकानेर के राठोड राज्य के अधिन रहा था. इस प्रकार यह स्थान हिन्दू और मुस्लिम लोगों का प्रतीक है.
वीर गोगाजी की शादी व उनका वैवाहिक जीवन - भगवान जाहरवीर गोगाजी का विवाह कोलूमण्ड की राजकुमारी से तय हुआ था. उनकी पत्नी का नाम रानी केलमदे था. रानी केलमदे पाबूजी के बड़े भाई बुडौजी की पुत्री थी. वीर गोगाजी रानी केलमदे से शादी करना चाहते थे. लेकिन बुडौजी यह नहीं चाहते थे कि केलमदे का विवाह वीर गोगाजी से हो, यह बात वीर गोगाजी को पता चली तो वे कोलूमण्ड की राजकुमारी केलमदे के बगीचे में एक फुलो के पेड़ पर सर्प का रूप धारण कर विराजमान हो जाते है.
जब रानी केलमदे उस फुलो के पेड़ पर फूल तोड़ने जाती है तो उन्हें फुलो पर स्थित वीर गोगाजी एक साँप के रूप में उन्हें डस लेते है. डसने के बाद वीर गोगाजी इस बात से कुपित हो जाते तब वे रानी केलमदे की कलाई पर अभिमंत्रित धागा बाधते है और स्वयं अंदर ही अंदर मंत्र पढ़ने लगते है. तब उनके मंत्रों की शक्ति के कारण रानी केलमदे ठीक हो जाती है. वीर गोगाजी का यह चमत्कार देखकर राजा बुडौजी भी उनसे बहुत प्रसन्न होते हैं और अपनी पुत्री की शादी वीर गोगाजी से कराने के लिए तैयार हो जाते है. इस प्रकार बाद में वीर गोगाजी और रानी केलमदे का विवाह हो जाता है.
वीर गोगाजी का संपूर्ण इतिहास - Veer Gogaji History in Hindi
आज के समय में पूरे देशभर में जाहरवीर गोगाजी के भक्त लगभग सभी जातियों और धर्मो में देखने को मिलते है. इसी से हमें यह ज्ञात होता है कि भगवान वीर गोगाजी की ख्याति कितनी प्रसिद्ध है और समस्त देशवासियों के लिए उनकी क्या चाहत व भावनाएँ थी. उन्हें लोगों द्वारा कहीं सर्पो के देवता तो कहीं नागों का अवतार माना जाता है. हमारे हिन्दू धर्म में उन्हें सर्पो का अवतार माना जाता है व मुस्लिम धर्म में उन्हें गोगापीर के नाम से प्रसिद्धि मिलीं हुईं है. राजस्थान में अधिकांश लोग वीर गोगाजी को जाहरवीर के नाम से जानते है. इसी के साथ अब हम भगवान वीर गोगाजी का पूरा इतिहास जानते है.
गोगाजी का पूरा इतिहास इन हिंदी - राजस्थान के चूरू जिले में ददरेवा नामक ठिकाने में चौहान वंश की साम्भर व चाहील शाखा में राजा उमर सिंह जी का शासनकाल था. उस समय राजा उमर सिंह के दो पुत्र थे जिनमें एक नाम वीर जेवरसिंह और दूसरे का नाम घेबरसिंह था. उन दोनो भाइयों का विवाह सरसा पट्टन की राजकुमारीयां रानी बाछल देवी और रानी काछल देवी से हुआ था. विवाह के बाद कई दिन बीत गए लेकिन उन दोनों रानीयों की कोई भी संतान उत्पन्न नहीं हुई. उन्होंने संतान प्राप्ति के वे सभी क्रियाकलाप किए जो वे करने में सक्षम थे लेकिन फिर भी इसका उन पर कोई असर नहीं हुआ.
तब रानी बाछल देवी और रानी काछल देवी दोनों ने गुरु गोरखनाथ जी की पूजा करनी शुरू कर दी. उन्होंने कई दिनों तक गुरु गोरखनाथ जी की पूजा की. जब पूजा पूरी हो गई तो रानी काछल देवी पहले भगवान गोरखनाथ जी के पास आशीर्वाद लेने जाती है. आशीर्वाद लेने के बाद काछल देवी को दो पुत्रों अर्जुन एवं सुर्जन की प्राप्ति होती है. उसके बाद रानी बाछल देवी गुरु गोरखनाथ जी के पास आशीर्वाद लेने जाती है. फिर गोरखनाथ जी को यह ज्ञात होता है कि आशीर्वाद तो काछल को प्राप्त हुआ था. लेकिन फिर भी वे रानी बाछल देवी को एक दिव्यपुत्र होने का वर्दान देते है.
जिससे भादो सुदी नवमी के दिन भगवान वीर गोगाजी का जन्म हुआ था. इससे भी अधिक उत्साह की बात तो यह है कि जिस दिन वीर गोगाजी जन्मे थे उसी दिन एक ब्राह्मण के घर 'नरसिंह पांडे' का जन्म हुआ एवं एक भंगी के घर 'रत्नाजी भंगी' का जन्म हुआ और एक हरिजन के घर 'भज्जू कोतवाल' का जन्म हुआ. जो बाद में तीनो गोगाजी सहित वे सब गुरु गोरखनाथ जी के शिष्य बनें थे. यही नहीं यह भी कहा जाता है कि वे सब वीर गोगाजी के सबसे घनिष्ठ मित्र थे, वे साथ-साथ खेलते, साथ-साथ रहते और हर मुश्किलों में एक दूसरे का साथ देते थे.
इतिहास में वीर गोगाजी के साथ-साथ उनकी भी बहुत ही अधिक मान्यता है. महान इतिहासकार देवीसिंह मंडावा अपने शब्दों में लिखते हैं कि चौहानो की साम्भर शाखा ने चुरू जिले से चार कोस पूर्व में अपना एक राज्य स्थापित किया था. जिनके पांच पुत्र तथा एक पुत्री थी. उनमें से बड़े पुत्र हर्ष को उत्तराधिकारी न बनाकर दूसरी रानी के बड़े पुत्र कन्हो को उत्तराधिकारी बनाया था. हर्ष और जीण साम्राज्य ने सीकर के दक्षिण में पहाड़ों पर तपस्या की जिससे जीण बड़ी प्रसिद्ध हुई और उसने देवत्व प्राप्त किया. जिसमें कन्हो की तीन पीढ़ियां बसने के बाद जेवरसिंह राजा हुए और उनकी पत्नी बाछल देवी से वीर गोगादेव पैदा हुए.
गोगाजी का युद्ध इतिहास
मुस्लिम आक्रमणकारीयो से युद्ध करने के बाद राजा जेवरसिंह वीरगति को प्राप्त हुए. उसके बाद फिर उनका भाई घेबरसिंह भी मुगलो के साथ युद्ध करते हुए वीरगति को प्राप्त हुआ. तत्पश्चात वीर गोगाजी ददरेवा के शासक बने. इस दौरान उन्होंने महमूद गजनवी को लगभग ग्यारह बार परास्त किया. वीर गोगाजी के बारे में कहा जाता है कि नाहरसिंह नामक व्यक्ति ने उनके भाइयों अर्जुन-सुर्जन को गोगाजी के खिलाफ भडकाया की तुम तो गोगाजी से बड़े हो तो फिर गोगाजी कैसे राजा बन सकते है. इस पद पर तो तुम्हें होना चाहिए.
इस बात से वीर गोगाजी और उनके भाइयों में युद्ध हुआ. जिसमें वीर गोगाजी ने दोनो भाइयों का सिर धड़ से अलग कर माता बाछल देवी को भेट कर दिया. इससे नाराज होकर होकर माता बाछल देवी ने वीर गोगाजी को राज्य से बहार निकाल दिया. तब वे गुरु गोरखनाथ जी के आश्रम मे चले गए थे. जहां से वे अपनी योग और सिद्धी का प्रयोग कर पत्नी के पास भी चले जाते थे. यह बात रानी बाछल देवी को पता चलने पर वे वीर गोगाजी को वापस अपने राज्य में आने का प्रस्ताव देती है और गोगाजी पुनः फिर से राज्य आसीन करते है.
अफगानिस्तान के बादशाह हजारो गायो को लूटकर ले जा रहा था. उस समय जाहरवीर गोगाजी ने उसपर कड़ा आक्रमण किया और हजारो गायो को उससे छुडाकर मुक्त किया था. इससे डरकर अन्य अरब के लूटेरो ने गायो को लूटना बंद कर दिया. वीर गोगाजी आत्याधमिक साधना भी करते थे. जिसमें वे साँप काटने पर उसका इलाज करते थे. यदि कोई साँप किसी को काट लेता तो वे उसे बुलाकर अपना जहर वापस चुसवाते थे. अगर कोई साँप इसे चुसने के लिए इंकार करता तो गोगाजी उन्हें मजबूर कर देते थे. इससे वीर गोगाजी की प्रसिद्धि दूर-दूर तक फैलने लगी.
सुल्तान महमूद गजनवी हर साल हिन्दुस्तान (Bharat) आता था और लूटमार करके वापस गजनी भाग जाता था. वह एक हाथ में इस्लाम का झंडा लहराते हुए व दुसरे हाथ में तलवार की धार से बेगुनाह लोगों के खुन की नदियाँ बहाता हुआ हिन्दुस्तान आता था. सुल्तान महमूद गजनवी द्वारा लूटमार, दरिद्रता, वेश्यावृत्ति की कुरीतियों से इस मजहब का नकाब पहनकर हिन्दुस्तान मे जो हैवानियत का खेल रचा, उसे युगों युगों तक भी भुलाया नहीं जा सकता. सर्वप्रथम महमूद गजनवी जब हिन्दुस्तान आया तो उनका युद्ध जंजुआ राजपूत राजा जयपाल की तंवर वंशी शाही से हुआ.
जिसमें महमूद गजनवी ने धोखे से राजा जयपाल शाही को परास्त कर दिया. इस युद्ध में राजा जयपाल शाही अपने अंतिम क्षणों में भी लड़ते रहे और वीरगति को प्राप्त हुए. इसके बाद सन 1024ई. को महमूद गजनवी ने गुजरात में सोमनाथ मंदिर को लूटकर, मंदिर को भी तोड़ दिया और कई आम लोगों को मौत के घाट उतारकर रक्त की नदियाँ बहा दी. यह समाचार वीर गोगाजी को मिलने पर वे बहुत ही क्रोधित हो उठते है और उनका खून खोलने लगता है जिससे उनका पूरा शरीर थर्राने लगता है. महमूद गजनवी सोमनाथ मंदिर को लूटकर उसे तोड़ने में सक्षम रहता है.
लेकिन गजनवी वापस लौटते समय गलती से जाहरवीर गोगाजी के दक्षिण-पश्चिम क्षेत्रों मे प्रवेश कर गया था. जहां वीर गोगा जी उससे बदला लेने का निश्चय कर रहे. जैसे ही गोगाजी को यह पता चला कि महमूद गजनवी उनके दक्षिण-पश्चिम क्षेत्रों मे प्रवेश कर गया है तो वीर गोगाजी ने उस पर शीघ्र ही आक्रमण करने का फैसला लिया लेकिन इसके लिए वीर गोगाजी के पास शाही सेना बहुत ही कम थी. जो महमूद गजनवी की सेना के आगे ना के बराबर थी. फिर वीर गोगाजी ने अन्य राजाओं से सहायता के लिए अपने पुत्र सामंत चौहान को भेजा.
सामंत चौहान कई राजाओं से मिला और उनसे सहयोग मांगा लेकिन कोई भी राजा उनके साथ तैयार नहीं हुआ जिससे सामंत चौहान को निराश हाथ से ही वापस लौटना पड़ा. इतने में मुहम्मद गजनवी भी उनके नजदीकी क्षेत्र में आ धमका और अपनी शाही सेना के साथ गोगामढी के रास्ते से गुजर रहा था. मदद की कोई भी आशा नहीं देखते हुए बप्पा वीर गोगाजी अपने चौहान भाईयो के साथ केसरिया बाना पहनकर लगभग 900 सिपाहियों के साथ महमूद गजनवी की सेना पर टूट पड़े और उनका रास्ता रोका दिया.
इस बीच दोनों फौजों के मध्य भयंकर युद्ध हुआ. जिसमें वीर गोगाजी वीरगती को प्राप्त हो गये और महमूद गजनवी वीर गोगाजी की सेना से नरसंहार करते हुए अपनी एक छोटी सी सेना के साथ आगे बढ़ा. यह बात सामंत चौहान को पता चली तो उसने गजनवी की फौज को उखाड़ फेंकने की योजना बनाई. उन्होंने ऊँट पर सवार होकर महमूद गजनवी का पीछा किया और स्वयं गजनवी की सेना में रास्ता बताने का बहाना बनाकर गुलमिल गए. रेगिस्तान में तेज गर्मी और आँधियों के चलते महमूद और उसकी सेना सोमनाथ का रास्ता भूल गए.
तब सामंत चौहान ने रास्ता बताने का झांसा दिया और कहा कि मैं सोमनाथ मंदिर जाने का दूसरा रास्ता जानता हूँ तब महमूद गजनवी के पास दूसरा कोई और सहारा नहीं था इसलिए उसने अपनी सेना को सामंत चौहान के साथ जाने का आदेश दिया. फिर सामंत चौहान सेना को गुमराह करते हुए जैसलमेर में रेतीले टीलों तक ले गया जहां पानी तक नसीब नहीं हो सकता था. मौका मिलते ही सामंत चौहान चौहान हर हर महादेव का नारा बोले और शत्रुओ पर भूखे शेर की भाँति टूट पड़ें और मरते दम तक लड़ते-लड़ते वीरगती को प्राप्त हुए.
वीर गोगाजी के वंशज व चौहान वंश की चाहिल शाखा
जाहरवीर गोगादेव की मृत्यु के बाद उनके भाई बैरसी और उनके पुत्र उदयराज ददरेवा के उत्तराधिकारी बने थे. जिसमें वीर गोगाजी के बाद बैरसी, उदयराज, जसकरण, केसोराई, मदनसी, विजयराज, पृथ्वीराज, गोपाल, लालचंद, अजयचंद, जैतसी आदि ददरेवा राज्य की गद्दी पर उत्तराधिकारी के रूप में विराजमान हुए थे. इतिहासकारों को सन 1213ईं को जैतसी का शिलालेख प्राप्त हुआ. जो मुख्य रूप से 1273 वि.स. का होना बताया गया है.
जिसमें जैतसी का वंशक्रम कायम खान रासोकार तक माना गया है और इसी शिलालेख से राजा जैतसी की एक निश्चित तिथि का अनुमान मिलता है. वीर गोगाजी से जैतसी तक के शासनकाल में चौहानों में कुल नौ राणाओं ने शासन किया था. जो बाद में कायंम खान के वंशज कायम खानी चौहान (मुस्लिम) कहलाए थे. जिनके वंशज आज भी वीर गोगाजी की पूजा करते है. सत्य तो यह है कि वीर गोगाजी के 13वें वंशज कर्मसी जब बालक थे
तब उन्हें मुस्लिम बादशाह फिरोजशाह तुगलक उठाकर ले गया था और जबरदस्ती मुसलमान बनाकर उनका नाम कायंम खान रख दिया और फिरोजशाह तुगलक ने अपनी बेटी का विवाह उनसे कर दिया था. बाद में वही कायंम खान हिसार का नवाब बना था. जिनके वंशज मुसलमान कहलाए थे. वीर योद्धा कायम खां को मुस्लिम बादशाह फिरोजशाह तुगलक ने धर्म परिवर्तन कर मुसलमान तो बना दिया लेकिन उनकी हिन्दू धर्म में आस्था, श्रद्धा और संस्कार प्रबल थे.
गोगामेड़ी गोगाजी का मंदिर व समाधि स्थल
गोगामेड़ी राजस्थान के हनुमानगढ जिले के नोहर उपखण्ड में स्थित है. जो गोगाजी का पवित्र समाधि स्थल है. गोगामेड़ी में वीर गोगाजी का मंदिर एक ऊंचे टीले पर मस्जिद की तरह बना हुआ है. जो सद्भावो और साम्प्रदायिकों का प्रतीक है. यह स्थान वीर गोगाजी के जन्म स्थान से लगभग 80 की मी दूरी पर है. इस स्थान पर हिन्दू और मुस्लिम दोनों धर्म के एक एक पुजारी खड़े रहते हैं. जिसमें कई राज्यों से सभी धर्म के लोग आते है एवं गुरु गोरखनाथ जी और गोगाजी की धूनी पर मात्था टेककर मन्नते माँगते है.
इस दिन लाखों लोग छडियो की भी पूजा करते है. गोगामेड़ी में गोगाजी के साथ ही गुरु गोरखनाथ की भी धूनी भी बनाई गई है. गोगामेड़ी की मीनारें मुस्लिम स्थापत्य कला ज्ञात कराती हैं. कहते है कि फिरोजशाह तुगलक सिंध प्रदेश को जीत कर वापस जाते समय गोगामेडी में ठहरे थे. तब रात के समय में राजा तुगलक व उनकी सेना ने इस स्थान पर चमत्कार देखा था. जिसमें मशालें लिए हुए घोड़ों पर सवार सेना उनकी तरफ आ रही थी. यह देख राजा तुगलक के पूरे सैनिकों में हाहाकार मच गया था. तब कुछ विद्वानों ने उन्हें बताया कि यह कोई महान सिद्ध है जो प्रकट होना चाहता है.
यह सुनकर बादशाह फिरोजशाह तुगलक अपनी लड़ाई लडने के बाद वापस आते समय गोगामेडी में एक मस्जिदनुमा मंदिर का निर्माण करवाते हैं. इस प्रकार गोगामेडी में फिरोजशाह तुगलक गोगाजी के मंदिर का निर्माण करवाते है. इसके अलावा पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और राजस्थान में हजारों की तादाद में वीर गोगाजी की माडी बनी हुई हैं जहां उनकी हर जगह हर धर्म और जाति के लोगो द्वारा पूजा-अर्चना की जाती है. उनका प्रमुख ध्वज नेजा कहलाता है. जिसमें गोगाजी की छड़ी का बहुत ही अधिक महत्त्व होता है.
इसमे जो साधक छड़ी की साधना नहीं करता है उसकी साधना अधूरी ही मानी जाती है क्योंकि मान्यता है कि जाहरवीर गोगाजी छड़ी में निवास करते थे. वीर गोगाजी उत्तर भारत मे लोक देवता के रूप मे पूजे जाते है. जहां दूर-दूर से लोग उनके दर्शन करने आते है. सर्पदंश से मुक्ति के लिए आज भी वीर गोगाजी की पूजा की जाती है. क्योंकि वीर गोगाजी के प्रतीक के रूप में पत्थर या लकडी पर सर्प की मूर्ती उत्कीर्ण करी जाती है. जिसमें लोक धारणा है कि यदि सर्प काटने से प्रभावित व्यक्ति को अगर वीर गोगाजी की मेडी तक लाया जाये तो वह व्यक्ति सर्प के विष से मुक्त हो जाते है.
गोगाजी का मेला
राजस्थान के मुख्य छः सिद्धों में से जाहरवीर गोगाजी को समय की दृष्टि से प्रथम देव माना जाता है. गोगाजी धर्म के संबंध में सबको बराबर मानते थे. लोक देवता जाहरवीर गोगाजी का जन्म स्थल ददरेवा में है जहां पर हर साल श्रावण शुक्ल पूर्णिमा से लेकर भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा तक भरपूर मेला लगता है जिसमें हिन्दू और मुस्लिम भरपूर रूप से इस मेले में आते है. जहां वीर गोगाजी के भक्त ददरेवा के साथ गोगामेड़ी तक आने पर ही अपनी यात्रा सफल मानते है. सभी जाति के लोग इस दिन उनकी मंदिर पर मात्था टेककर उनसे मन्नतें माँगते हैं जिसमें हिन्दू उन्हें गोगा वीर तथा मुसलमान गोगा पीर कहते है.
गोगाजी के इतिहास व जीवन के बारे में महत्वपूर्ण तथ्य
- वीर गोगाजी वर्तमान में राजस्थान के प्रसिद्ध लोक देवताओं में से एक हैं.
- पत्थर या लकड़ी पर सर्प मूर्ति उत्कीर्ण गोगाजी का प्रतीक है.
- सर्पदंश मुक्ति के लिए जाहरवीर गोगाजी की पूजा की जाती है.
- सर्पदंश से प्रभावित व्यक्ति को यदि गोगामेड़ी तक लाया जाए तो वह सर्प विष से मुक्त हो जाता है.
- गोगाजी जी की मूर्ति खेजड़ी के नीचे रखी जाती है.
- इतिहासकारों और विद्वानों ने उनके जीवन को धर्म, शौर्य, पराक्रम और उच्च जीवन आदर्शों का प्रतीक माना है.
- गोगाजी का जन्म स्थान ददरेवा और समाधि स्थल गोगामेड़ी है.
- गोगाजी के मेले में राजस्थान के अलावा जम्मू कश्मीर, पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और गुजरात सहित विभिन्न राज्यों से श्रद्धालु पहुँचते हैं.
- जाहरवीर गोगाजी की समाधि स्थल उनके जन्म स्थान से लगभग 80 की मी दूर स्थित है.
- गोगाजी के जन्म स्थान पर गुरु गोरखनाथ का आश्रम भी बनाया गया है.
वीर गोगाजी का इतिहास और जीवन परिचय से संबंधित सवाल (Veer Gogaji History & Biography FAQ in Hindi)
Q.1 वीर गोगाजी कौन थे?
Ans. वीर गोगाजी नागवंशीय चौहानों के वंशज राजा जेवर सिंह के पुत्र थे, जो गुरु गोरखनाथ जी के आशीर्वाद से जन्मे थे. जिन्हें सांपो के देवता के रूप में राजस्थान में कई भक्तों द्वारा पूजा जाता है.
Q.2 गोगाजी का जन्म कब हुआ था?
Ans. जाहरवीर गोगा जी का जन्म विक्रम संवत 1003 को चौहानों के कुल में हुआ था.
Q.3 गोगाजी का जन्म कहाँ हुआ था?
Ans. वीर गोगाजी का जन्म राजस्थान के चूरु जिले में ददरेवा नामक गांव में हुआ था.
Q.4 गोगाजी के माता-पिता का नाम क्या था?
Ans. जेवर सिंह और बाछल देवी.
Q.5 गोगाजी की शादी किससे हुई थी?
Ans. बुडौजी की पुत्री कोलूमण्ड की राजकुमारी से.
Q.6 गोगाजी की पत्नी का नाम क्या था?
Ans. वीर गोगाजी की प्रिय पत्नी का नाम केलमदे था.
Q.7 वीर गोगाजी को अन्य किन-किन नामों से जाना जाता है?
Ans. जाहरवीर, जाहरपीर, गोगापीर, वीर गोगाजी, गोगावीर, गुग्गा आदि
Q.8 गोगाजी की घोड़ी का नाम क्या था?
Ans. नीली घोड़ी.
Q.9 जाहरवीर गोगा जी का मूल मंत्र कौनसा है?
Ans. हे गुगा साई॥
Q.10 गोगाजी की मृत्यु कब और कैसे हुई थी?
Ans. वीर गोगाजी की मृत्यु महमूद गजनवी के साथ युद्ध में लड़ते हुए हुई थी जिसमें उनके पुत्र सामंत चौहान भी वीरगती को प्राप्त हुए थे.
Q.11 गोगाजी का समाधि स्थल कहा पर है?
Ans. हनुमानगढ़ जिले के (नोहर उपखंड) में
Q.12 गोगाजी को क्या कहा जाता है?
Ans. साँपो का देवता.
Q.13 गोगाजी के गुरु कौन थे?
Ans. गोगाजी के परम व आदर्श गुरु, गोरखनाथ जी थे.
Q.14 मुस्लिम समाज गोगाजी को किस नाम से संबोधित करता है?
Ans. जाहर पीर
Q.15 गोगामेड़ी कहाँ स्थित है?
Ans. राजस्थान हनुमानगढ़ जिले में.
Q.16 जाहरवीर गोगाजी का मंदिर कहाँ है?
Ans. गोगाजी का मंदिर हनुमानगढ़ के गोगामेड़ी कस्बे में स्थित है.
Q.17 वीर गोगाजी को किसका अवतार माना जाता है?
Ans. नागराजजी का अवतार
Q.18 गोगाजी को साँपो का देवता किसने कहा था?
Ans. सांपो के देवता "तक्षक नाग" ने
Q.19 गोगाजी का थान कौनसे पेड़ के नीचे बनाया गया है?
Ans. खेजड़ी के पेड़ के नीचे.
मैं उम्मीद और आशा करता हूँ कि आपको आज का यह लेख "लोक देवता जाहरवीर गोगाजी का इतिहास और जीवन परिचय" (Veer Gogaji History & Biography in Hindi) पसंद आया होगा. अंत में, मैं आप से यही चाहूँगा कि यदि आपको यह लेख पसंद आया हो तो अपने करीबी दोस्तों में जरूर शेयर करें ताकि आपकी तरह ही यदि कोई वीर गोगाजी का इतिहास और जीवन परिचय जानना चाहता होगा तो उन्हें भी यह जानकारी उपलब्ध हो सके.
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