मूल अधिकारों की आवश्यकता एवं महत्व - Importance and Necessity of Fundamental Rights in Hindi

Molik ya Mool Adhikaron ki avashyakta evam mahatva - Importance and Necessity of Fundamental Rights in Hindi मूल अधिकारों की आवश्यकता एवं महत्व

भारतीय संविधान में मौलिक (मूल) अधिकार कितने है? मूल अधिकारों की आवश्यकता एवं महत्व

Hello दोस्तों स्वागत है आपका आज के इस लेख में, दोस्तों आज हम भारतीय संविधान में मौलिक अधिकारों का वर्णन करने वाले है. जिसमें हम आपको मूल या मौलिक अधिकारों से संबंधित जानकारी देने वाले है. आगे बढ़ने से पहले एक बार मूल अधिकारों की स्थिति पर दृष्टि डालते है. मूल अधिकार अर्थात अधिकारों का ही एक मुख्य और प्रमुख स्वरूप है. मूल अधिकार संविधान द्वारा नागरिकों को प्रदान किए गए अधिकार है, मूल अधिकार व्यक्ति के सर्वांगीण विकास के लिए बहुत ही उपयोगी और महत्वपूर्ण होते है. जिन्हें हम मूल अधिकार कहते है. हमारे भारतीय संविधान में मूल अधिकारों को बनाने का मुख्य उद्देश्य यही था कि प्रत्येक नागरिक को समानता मिले, स्वतंत्रता मिले, न्याय मिले और सुरक्षा मिले, इन्हीं को ध्यान में रखते हुए हमारे संविधान द्वारा मूल अधिकारों को बनाया गया है.


6 मौलिक (मूल) अधिकार कौन-कौन से है? मौलिक अधिकारों का वर्गीकरण

वर्तमान में भारतीय संविधान के प्रमुख मौलिक अधिकार 6 है. भारतीय संविधान द्वारा भारतीय नागरिकों को 7 मूल अधिकार प्रदान किए गए थे किंतु 44वें संविधान संशोधन द्वारा संपत्ति के अधिकार को मूल अधिकारों से विलोपित कर कानूनी अधिकार के रूप में ही सम्मिलित किया गया था. इस तरह मूल अधिकारों को छः श्रेणियों के तहत गारंटी प्रदान की गई है -

  1. समानता का अधिकार
  2. स्वतंत्रता का अधिकार
  3. शोषण के विरुद्ध अधिकार
  4. धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार
  5. सांस्कृतिक और शिक्षा संबंधी अधिकार
  6. संवैधानिक उपचार का अधिकार

राष्ट्र की एकता व आम नागरिकों के हित के लिए किसी राज्य द्वारा अब तक बनाए गए मानव अधिकारों के चार्टरो में सर्वाधिक विस्तृत चार्टर संविधान के भाग 3 में शामिल है. मूल अधिकारों के संबंध में संविधान में कुल 23 अनुच्छेद है. यह अनुच्छेद 12 से 30 व 32 से 35 तक दिए गए है. इनमें भी कुछ अनुच्छेद असाधारण रूप से विस्तृत है. विशेष रूप से 19वें अनुच्छेद में 450 शब्द होनी से इसका आकार अत्यधिक व्यापक हो गया है. 

मौलिक अधिकार अधिकारों का ही स्वरूप है मौलिक अधिकारों का अर्थ स्पष्ट करते हुए भूतपूर्व मुख्य न्यायाधीश के सुब्बाराव ने कहा था कि "मौलिक अधिकार परंपरागत प्राकृतिक अधिकारों का दूसरा नाम है यह वे नैतिक अधिकार है जिन्हें हर काल में, हर जगह, हर मनुष्य को प्राप्त होना चाहिए क्योंकि अन्य प्राणियों के विपरीत वह चेतना तथा नैतिक प्राणी है. मानव व्यक्तित्व के विकास के लिए मौलिक अधिकार आवश्यक है. वे ऐसे अधिकार है जो मनुष्य को स्वेच्छा अनुसार जीवन व्यतीत करने का अवसर प्रदान करते है.


मूल (मौलिक) अधिकारों की आवश्यकता एवं महत्व - Importance and Necessity of Fundamental Rights in Hindi

1) प्रत्येक व्यक्ति को सुरक्षा प्रदान करना - मौलिक अधिकार लोकतंत्र की आधारशिला हैं. इनके माध्यम से प्रत्येक नागरिक को शारीरिक, मानसिक और नैतिक विकास की सुरक्षा प्रदान की जाती है।

2) शासन की मनमानी पर रोक - कौटिल्य के अर्थशास्त्र में उल्लेख है कि प्राचीन भारतीय राजव्यवस्था में मनमाने शासकों के लिए कोई स्थान नहीं था. भारतीय राजाओं की शक्ति पर ऐसे प्रतिबंध लगाए गए थे कि वे शक्ति का दुरुपयोग नहीं कर सकते थे. संविधान में दिए गए मौलिक अधिकार सरकार और विधायिका को रोकने में मदद करते है. वे नागरिकों को शासन के अधिकारों और बहुसंख्यक पार्टी की तानाशाही से बचाते हैं. मौलिक कानून सामान्य कानून से बेहतर है. राज्य कोई भी कानून प्रदान नहीं कर सकता है जो इन अधिकारों को दूर करता है या कम करता है.

3) न्यायिक सुरक्षा - मौलिक अधिकारों के उल्लंघन की स्थिति में, नागरिक अदालत की शरण ले सकता है.

4) लोकतंत्र का आधार - मौलिक अधिकार लोकतंत्र के लिए एक स्तंभ की भूमिका निभाते हैं, इसकी अनुपस्थिति में लोकतांत्रिक शासन की कल्पना नहीं की जा सकती है.

5) समानता के कारक - राष्ट्र के सभी नागरिकों को संवैधानिक अधिकार प्रदान करके संविधान द्वारा आपसी समानता स्थापित की गई है. सभी विशेषाधिकार समाप्त कर दिए गए हैं. नागरिकों द्वारा मौलिक अधिकार मानव स्वतंत्रता के आदर्श और रक्षक दोनों है. इस कारण से, उनका अपना मनोवैज्ञानिक महत्व है. वर्तमान युग का कोई भी राजनीतिक दार्शनिक उन्हें नजरअंदाज नहीं कर सकता.


मौलिक अधिकारों का मूल्यांकन और इसकी प्रमुख विशेषताएँ | Appreciation of Fundamental Rights

1. मूल अधिकारों में इतने प्रतिबंध लगा दिए गए हैं कि इनके बारे में कहा जाता है कि संविधान द्वारा एक हाथ से मूल अधिकार प्रदान किए गए व दूसरे हाथ से ले लिए गए.

2. आपातकाल के समय मूल अधिकार स्थगित किया जाना न्यायोचित है लेकिन शांति काल में भी मूल अधिकारों पर स्थगन किया जाना है इसके अस्तित्व पर प्रश्नचिन्ह लगा देता है. विशेष रूप से सामान्य परिस्थितियों में भी निवारक नजरबंदी की जो व्यवस्था की गई है वह कूट आलोचना का विषय रही है हरिविष्णु कामथ ने इस इन व्यवस्थाओं का विरोध करते हुए संविधान सभा में कहा था "इस व्यवस्था द्वारा हम तानाशाही राज्य की और पुलिस राज्य की स्थापना कर रहे हैं

3. मूल अधिकार भारतीय नागरिकों को व्यवस्थापिका की निरंकुशता से सुरक्षा प्रदान करने में समर्थ नहीं है. संसद तथा विधानसभा द्वारा बनाए गए कानून वैध है चाहे में नागरिक हितों के प्रतिकूल ही क्यों न हो.

4. मौलिक अधिकारों पर प्रतिबंधों की व्यवस्था संविधान में राष्ट्र व समाज विरोधी गतिविधियों को रोकने के लिए की गई है व्यवहारिक दृष्टि से इनका प्रयोग राजनीतिक विरोधियों के स्वर को दबाने के लिए भी किया जा सकता है.

5. मूल अधिकारों के अंतर्गत भारतीय संविधान में अल्पसंख्यकों, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, के लिए विशेष संरक्षण की व्यवस्था की गई है किंतु इसका प्रयोग वोटों की राजनीति के लिए हुआ है

6. शोषण के विरुद्ध अधिकार यद्यपि स्त्रियों, बच्चों, गरीब कामगारों के हितों की रक्षा के लिए बनाया गया है किन्तु अशिक्षित, बेरोजगार, गरीबी के कारण इन वर्गों का शोषण व्यवहारिक रूप से नहीं रोका जा सका है

7. मौलिक अधिकारों को न्यायिक सुरक्षा देने के बावजूद वर्तमान न्यायिक प्रक्रिया लंबी, जटिल व खर्चीली होने से आम नागरिकों के हितों की रक्षा में सफल नहीं हो पा रही है. उपरोक्त आलोचनाओं के बावजूद मौलिक अधिकार का महत्व कम नहीं हुआ है क्योंकि राष्ट्र की सुरक्षा व्यक्ति की सुरक्षा से अधिक मूल्यवान है. मूल अधिकारों के अतिक्रमण की परिस्थितियां अल्पकालिन होती है.


भारत के संविधान में मौलिक अधिकारों का वर्णन

  1. समानता का अधिकार (अनुच्छेद 14 से 18)
  2. स्वतंत्रता का अधिकार (19 से 22)
  3. शोषण के खिलाफ अधिकार (23 से 24)
  4. धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार (25 से 28)
  5. सांस्कृतिक और शिक्षा संबंधी अधिकार (29 से 30)
  6. संवैधानिक उपचार का अधिकार (अनुच्छेद 32)

1) समानता का अधिकार - भारत के संविधान में प्रत्येक नागरिक को कानून के समक्ष समानता, रोजगार के अवसरों की समानता और राज्य में सामाजिक समानता दी गई है, इसके लिए संविधान में निम्नलिखित प्रावधान किए गए है.

  • कानून के समक्ष समानता
  • जाति, धर्म, लिंग आदि के आधार पर भेदभाव का निषेध
  • सार्वजनिक रोजगारों में अवसर की समानता
  • अस्पृश्यता का उन्मूलन अनुच्छेद 17
  • शीर्षकों का अंत अनुच्छेद 18

2) स्वतंत्रता का अधिकार - भारतीय संविधान में, एक व्यक्ति को छह बुनियादी स्वतंत्रता प्रदान की गई है, भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, बिना हथियारों के शांतिपूर्वक सभा की स्वतंत्रता, भारत राज्य में निवास की स्वतंत्रता एवं आजीविका और व्यापार की स्वतंत्रता

  • विचार और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता लेख 19 (क)
  • बिना शस्त्र के शांतिपूर्ण ढंग से सभा करने की स्वतंत्रता अनुच्छेद 19(ख)
  • संघ और सामुदायिक भवन की स्वतंत्रता अनुच्छेद 19 (ग)
  • हर जगह घूमने की आजादी अनुच्छेद 19 (घ)
  • निवास की स्वतंत्रता अनुच्छेद 19 (ड़)
  • व्यापार की स्वतंत्रता अनुच्छेद 19 (छ)

3) शोषण के खिलाफ अधिकार - भारत के संविधान के अनुच्छेद 23 और 24 में सभी नागरिकों को शोषण के खिलाफ अधिकार प्रदान करके शोषण की सभी स्थितियों को समाप्त करने का प्रयास किया गया है.

  • मानव और बलात् श्रम की खरीद और बिक्री पर प्रतिबंध (अनुच्छेद 23)
  • बाल श्रम का निषेध (अनुच्छेद 24)

4) धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार - हमारा भारत एक बहुधार्मिक देश है. यहां हर धर्म के लोग रहते है. संविधान के अनुच्छेद 25-28 में प्रत्येक व्यक्ति को धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार दिया गया है.

  • अंतःकरण की स्वतंत्रता (अनुच्छेद 25)
  • धार्मिक संबंधी मामलों में प्रबंधन की स्वतंत्रता (अनुच्छेद 26)
  • राज्य संस्थानों में धार्मिक शिक्षा पर रोक (अनुच्छेद 28)

5) सांस्कृतिक और शैक्षिक अधिकार - अनुच्छेद 29 और 30 में सांस्कृतिक और शैक्षिक अधिकार प्रदान किए गए हैं (1) अल्पसंख्यकों के हितों का संरक्षण, अनुच्छेद 29 के अनुसार, देश के सभी नागरिकों को संस्कृति और शिक्षा की स्वतंत्रता का अधिकार दिया गया है. (2) अल्पसंख्यकों के लिए शिक्षण संस्थानों की स्थापना और संचालन अधिकार, अनुच्छेद 30 के अनुसार, अल्पसंख्यक वर्ग को अपनी इच्छा के अनुसार शैक्षणिक संस्थान स्थापित करने और संचालित करने का अधिकार है.

6) संवैधानिक उपचार का अधिकार - यद्यपि संविधान में मौलिक अधिकार प्रदान किए गए हैं, लेकिन यदि उनके उचित कार्यान्वयन के लिए व्यवस्था नहीं की जाती है, तो उनका कोई अर्थ नहीं होगा. इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए संविधान निर्माताओं ने संवैधानिक उपचार का अधिकार दिया है. इसका मतलब है कि नागरिक अधिकारों को लागू करने के लिए न्यायपालिका में शरण ले सकता है.

डॉ. अम्बेडकर ने अनुच्छेद 32 के महत्व को स्पष्ट करते हुए कहा था कि यदि कोई मुझसे पूछे कि संविधान का कौन सा अनुच्छेद है, जिसके बिना संविधान अक्सर शून्य हो जाएगा, तो मैं इस अनुच्छेद के अलावा किसी अन्य अनुच्छेद की ओर इशारा नहीं कर सकता. यह संविधान का हदय और आत्मा है. अधिकारों की रक्षा के लिए सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय द्वारा निम्नलिखित पांच प्रकार के लेख जारी किए जा सकते है.

  • बंदी प्रत्यक्षीकरण लेख (Habeas corpus)
  • परमादेश (Mandamus)
  • प्रतिशत लेख (Prohibition)
  • उत्प्रेषण लेख (Certiorari)
  • अधिकार पृच्छा (Quowarranto)


संविधान में मौलिक (मूल) अधिकारों से संबंधित सवाल | Fundamental Rights FAQ in Hindi

Q.1 मूल अधिकार क्या है?

Ans. मूल अधिकार लोकतांत्र की आधारशिला है जो संविधान द्वारा जनता के हित के लिए बनाए गए है.

Q.2 मूल अधिकार कितने है?

Ans. भारतीय संविधान में मुख्य रूप से मूल अधिकार 6 है. पहले 7 मूल अधिकार थे जिसमें संपत्ति के अधिकार को 44वें संविधान संशोधन द्वारा हटा दिया गया.

Q.3 मौलिक अधिकार किस देश से लिया गया है?

Ans. संयुक्त राज्य अमेरिका (यूएसए) के संविधान से

Q.4 6 मौलिक अधिकार कौन-कौन से है?

Ans. समानता का अधिकार, स्वतंत्रता का अधिकार, शोषण के खिलाफ अधिकार, धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार, सांस्कृतिक और शिक्षा संबंधी अधिकार

Q.5 सामाजिक अपराधियों का निषेध किस मूल अधिकार से संबंधित है?

Ans. समानता का अधिकार (अनुच्छेद 14 से 18)

Q.6 किस मूल अधिकार को भारतीय संविधान की आत्मा कहा गया है?

Ans. संवैधानिक उपचार का अधिकार

Q.7 स्वतंत्रता का अधिकार क्या है?

Ans. अभिव्यक्ति, शांति पूर्वक सम्मेलन, निवास, व्यापार आदि की स्वतंत्रता ही स्वतंत्रता का अधिकार है.

Q.8 मौलिक अधिकारों कोई 3 महत्व

Ans. शासन की स्वेच्छाचारिता पर रोक, प्रत्येक नागरिक को सुरक्षा प्रदान करना, न्यायिक सुरक्षा


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