भाषावाद क्या है, इसकी परिभाषा, तात्पर्य, अर्थ, समाधान, भाषागत समस्या, कारण, भारत में भाषाई विवाद, भाषा शिक्षा और राजभाषा की समस्या
What is Lingualism in Hindi |
हमारे भारत देश में भाषावाद की समस्या एक बहुत बड़ा सवाल है. क्योंकि यहाँ अन्य देशों की तुलना में बहुत सारी छोटी-मोटी अन्य भाषाओं को भी बोला जाता है जिससे कि हमारे भारत में भाषावाद एक बड़ा मुद्दा बन चुका है.
इसी के चलते 1955 में पहला राजभाषा आयोग गठित किया गया. जिसमें हमारी प्रिय हिन्दी भाषा को राजभाषा (राष्ट्रीय भाषा) का दर्जा दिया गया था. इसके बाद 1967 में "राजभाषा संशोधन अधिनियम" के नेतृत्व में त्रिभाषा फार्मूला लागू किया गया था.
भाषावाद क्या है (What is Lingualism)
Bhashavad kya hai? in hindi हमारे संविधान के अनुच्छेद 343 में स्पष्ट उल्लेख किया गया है कि भारत संघ की राजभाषा हिन्दी होगी. हिन्दी का अधिकाधिक प्रयोग और क्षेत्रीय या स्थानीय भाषाओं की स्थिति पर सुझाव देने के लिए राष्ट्रपति द्वारा भाषा आयोग के गठन का भी प्रावधान किया गया है. जो आयोग देश की सांस्कृतिक और औद्योगिक, वैज्ञानिक उन्नति का और लोक सेवाओं के सम्बन्ध में अहिन्दी भाषी क्षेत्रों के व्यक्तियों की आवश्यक मांगों पर भी विचार करेगा.
इसके साथ ही संविधान राज्य के विधानमण्डलों को भी यह अधिकार प्रदान करता है कि वे उस राज्य में राजकीय प्रयोजन हेतु हिन्दी या उस राज्य की क्षेत्रीय भाषा को स्वीकार कर सकेगा. परस्पर सहमति से इस व्यवस्था को दो या दो से अधिक राज्य भी स्वीकार कर सकते हैं. इस प्रक्रिया में भाषायी अल्प संख्यको के अधिकारों की पूर्ण रक्षा के भी स्पष्ट प्रावधान है.
भाषावाद की पृष्ठभूमि (Background)
Background of Lingualism: संविधान में इनहीं व्यवस्थाओं को क्रियान्वित करने हेतु 1955 में पहला राजभाषा आयोग प्रो. बी.जी. खेर की अध्यक्षता में गठित किया गया. 1967 में "राजभाषा संशोधन अधिनियम" के अंतर्गत त्रिभाषा फार्मूला लागू करने का सुझाव दिया गया था. इसके तहत सरकारी सेवाओं में पत्राचार के साथ-साथ प्रतियोगी परीक्षाएँ हिन्दी, अंग्रेजी व अन्य प्रादेशिक भाषा में ली जाएगी.
हिन्दी का निरन्तर विकास भी इसी प्रक्रिया का हिस्सा होगा. इन सब स्पष्ट प्रावधानों के होते हुए भी हमारे भारत देश में हिन्दी भाषा के विकास में निरन्तर बाँधाए बनी हुई है. Bhasha के आधार पर अन्य राज्यों का पुनर्गठन एवं दक्षिण के कुछ राज्यों में Hindi भाषा विरोधी आन्दोलन विचारणीय मुद्दे रहे है. bhasha के आधार पर Naye राज्यों के निर्माण की मांग में ही Bhashavad की संकीर्णताएँ निहित है.
किसी क्षेत्रीय भाषा का विकास हो इसमें अन्य नागरिकों को कोई आपत्ति नहीं हो सकती किन्तु क्षेत्रीय भाषा के विकास में हिन्दी को बाधक मानना व उसका हिसंक तरीकों से विरोध राष्ट्रीय अस्मिता के लिए ठीक नहीं है. 'हिन्दी साम्राज्यवाद का असुरक्षा भाव समाप्त कर अहिन्दी भाषी क्षेत्रों में विश्वास स्थापित करना देश की प्राथमिकता हो, जिससे 'त्रिभाषा फॉर्मूला व्यावहारिक रूप धारण कर सकें.
क्षेत्रीय एवं पारिवारिक Bhashaye kisi भी राष्ट्रीय भाषा का स्थान नहीं ले सकती और न ही इन्हें देश ki राजभाषा se कोई चुनौती महसूस होनी chahiye. भाषायी विविधताएं समाज का एक स्वाभाविक लक्षण है, जिसे सहज रूप से स्वीकारना चाहिए. भाषा के अंतर्गत उसी आधार पर आन्दोलन कुछ स्वयं नेताओं के नेतृत्व के अनुरक्षण के व्यायाम रहे है.
आम नागरिक को वह समझना और समझाना आवश्यक है. Shasan का भी ये दायित्व होता है कि वह संसाधनों, रोजगार के अवसरों का समान रूप से वितरण बिना kisi भाषायी भेदभाव से करें. सर्वत्र कानून का शासन हो, न कि भाषायी बहुसंख्यक की स्वेच्छाचारिता का शासन. हमारे देश में भी Hindi राष्ट्रीय भाषा को संवैधानिक मान्यता दिलवाने ke liye शान्तिपूर्वक आन्दोलन kiye जा रहे है.
भाषावाद की समस्या के समाधान के उपाय (Measures to Resolve the Problem of Linguism)
भाषावाद की समस्या का समाधान भाषा के आधार पर उग्र आन्दोलन राष्ट्रीय एकता व अखंडता के लिए एक चुनौती है इसका शान्तिपूर्वक हल निकालना चाहिए. जिसके कुछ उपाय ये भी हो सकते हैं -
- परस्पर समझाईश व प्रेरित करना, बहुसंख्यक हिन्दी भाषा -भाषियों का दायित्व बनता है कि अहिन्दी भाषी राज्यों को समझाईश द्वारा प्रेरित करे कि हिन्दी किसी भी रूप में प्रादेशिक भाषा के लिए चुनौती नहीं बल्कि सहायक है।
- हिन्दी भाषा का प्रचार-प्रसार सुनियोजित तरीके से सभी प्रजातंत्र को विश्वास में लेकर किया जाए. जिससे उनकी किसी भी दूसरी भाषा को लेकर जिज्ञासा न रहे.
- भाषा के आदान-प्रदान के लिए सांस्कृतिक एवं शैक्षणिक Activities का विस्तार ज्यादा से ज्यादा किया जाए.
- पर्यटन को बढ़ावा देकर हिन्दी की आवश्यकता को व्यावहारिक बनाकर उसे सरल बनाया जाए.
- त्रिभाषा फॉर्मूला व्यवस्थित रूप में केन्द्र व राज्यों के स्तर पर सुचारू रूप से लागू किया जाए.
- प्रादेशिक भाषाएँ भी हिन्दी के प्रसार के लिए सहायक हो सकती है, उसी दिशा में उनका भी विस्तार किया जाए.
- राजनीतिक संकीर्णताएँ समाप्त करके, राष्ट्रीय के हित में ही भाषावाद की समस्या का हल ढूँढा जाए.
- आंग्ल भाषा का प्रशासनिक प्रयोजनार्थ एवं अनुवाद की सीमाओं तक ही उपयोग हो इससे भाषावाद काफी हद तक कम होगा.
- भाषाएँ तो एक सम्प्रेषण का माध्यम है, यह तो किसी भी भाषा के परस्पर को जोडती है, बल्कि तोड़ती नहीं यह भाव देशवासियों के मन में हमें जगाना होगा.
What is Lingualism FAQ in Hindi
Q.1 भाषावाद का अर्थ क्या है?
Ans. क्षेत्रीय भाषा से राष्ट्रीय भाषा को श्रेष्ठ मानने की प्रवृत्ति
Q.2 भाषावाद से क्या अभिप्राय है?
Ans. किसी विस्तृत भाषा को लेकर आपसी भेदभाव भाषावाद है.
Q.3 त्रिभाषा फार्मूला लागू करने का सुझाव कब आया था?
Ans. 1967 में.
Q.4 भारत में राजभाषा का दर्जा किस भाषा को दिया गया है?
Ans. हिंदी भाषा को.
Q.5 त्रिभाषा फार्मूला कब और कौनसे अधिनियम द्वारा पारित किया गया था?
Ans. 1967 में "राजभाषा संशोधन अधिनियम" द्वारा.
Q.6 भाषावाद कैसे पनपा है?
Ans. क्षेत्रीय भाषा से राष्ट्रीय भाषा को श्रेष्ठ मानने से भाषावाद पनपा है.
आशा करता हूँ की आपको यह "भाषावाद क्या है? तथा इसका समाधान What is Lingualism in Hindi" की Information अच्छी लगी होगी यदि आपको इस Information से संबंधित कोई सवाल हो आप हमे कमेंट करके बता सकते है.
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