राणा पूंजा भील का इतिहास || History of Rana Punja Bhil in hindi

History of Rana Punja Bhil in hindi: राणा पूंजा भील का इतिहास इनका जन्म कब और कहाँ हुआ था? राणा पूंजा भील का जन्म राजस्थान के मेरपुर में हुआ था।

मेरे प्रिय भील भाइयों और बहनों को आज हम समस्त भीलों के पिता कहे जाने वाले मसीहा 'वीर शिरोमणि राणा पूंजा' भील के इतिहास के बारे में जानने वाले है। वीर राणा पूंजा भील एक ऐसे नायक थे जिनके पराक्रम से दुश्मन भी थर-थर कांपते थे। ये भीलो के ही नहीं अपितु पूरे देश के एक महान क्रांतिकारी युत हुए है। इन्होंने अपने जीवन में कभी हार स्वीकार नहीं की थी जो आज भी हमें ऐतिहासिक पृष्ठभूमि में देखने को मिलता है। 


राणा पूंजा भील का इतिहास History of Rana Punja Bhil in hindi
Rana Punja Bhil


राणा पूंजा भील का इतिहास


शिरोमणि राणा पूंजा भील कौन था? नायक राणा पूंजा भील भोमट के भीलों के राजा थे। जो अरावली पर्वतो के जंगलों में निवास करते थे। जहां दुश्मन तो क्या परिन्दे भी पर नहीं मार सकते थे। इन्होंने अपने समस्त क्षेत्र के चारों ओर ऐसा रक्षा कवच बना रखा जिसे कोई भी राजा तोड़ नहीं सकता था। भीलो की नगरी में भी बहुत सारे भील क्रांतिकारी पनपे थे, लेकिन राणा पूंजा भील को भीलो के सबसे बड़े महान क्रांतिकारी योद्धा के रूप में जाना जाता है। इन्होंने जंगलों रहकर घाँस की रोटी खाकर सम्पूर्ण देश के भील प्रदेश को स्वतंत्रता दिलाई थी। 


राणा पूंजा भील का जीवन परिचय:


भील राणा पूंजा का जन्म कब और कहाँ हुआ था? राणा पूंजा भील का जन्म 16वी शताब्दी में राजस्थान के मेरपुर नामक स्थान पर हुआ था। इनके पिता का नाम दूदा होलंकी और माता केहरी बाई थी। ये बचपन से ही वीर और पराक्रमी थे। इन्हें अपनी पिता की मृत्यु के बाद मात्र 14 वर्ष की आयु में ही मेरपुर गांव का मुखिया बना दिया गया था। 


यह उनके जीवन की पहली परीक्षा थी। इसी परीक्षा को उत्तीर्ण कर समाज में उनका सम्मान और भी बड़ गया और तत्काल ही उन्हें 'भोमट' का राजा बना दिया गया और पूरे मेवाड़ में राणा पूंजा की जय-जय कार होने लगी। भोमट अरावली की पहाड़ियों में था। जो आज भी राणा पूंजा की वीरता और शोहरत का प्रतीक है।


राणा पूंजा भील का इतिहास || History of Rana Punja Bhil in hindi



महाराणा प्रताप और राणा पूंजा भील:


कहा जाता है कि महाराणा प्रताप का पालन-पोषण भी भीलो ने ही किया था। राजा उदय सिंह की मृत्यु के बाद चित्तोड़ का राजा महाराणा प्रताप को बनाया गया था। मुगल सेना का राजा अकबर चित्तोड़ को अपने कब्जे में लेना चाहता था इसलिए मेवाड के समस्त राजाओं को अपनी ओर मिला लिया और सभी राजा अकबर के गुलाम बन गए थे। 


अकबर ने महाराणा प्रताप को भी संधि का प्रस्ताव भेजा। लेकिन राणा प्रताप ने अकबर के साथ अपनी संधि स्वीकार नहीं की थी और महाराणा प्रताप ही ऐसे शासक थे जो अकेले अकबर के खिलाफ थे। इसी बात से दोनों शासकों के मध्य युद्ध होना तो तय था। ऐसे में महाराणा प्रताप को युद्ध करने के लिए अपने सहयोगी सेनाओं की आवश्यकता पड़ी तब महाराणा प्रताप को भीलो की नगरी में सबसे शक्तिशाली भील राणा पूंजा भील के बारे में पता चला तो महाराणा प्रताप ने इन्हें संधि का प्रस्ताव भेजा। 


लेकिन राणा पूंजा भील ने महाराणा प्रताप को स्वयं बुलाया। तत्काल ही महाराणा प्रताप भील प्रदेश गये और राणा पूंजा भील से मेवाड की रक्षा के लिए सहयोग मांगा। राणा पूंजा भले महाराणा को कैसे मना कर सकते थे क्योंकि महाराणा प्रताप को भी भील जनजाति ने ही पाल-पोष के बड़ा किया था। राणा पूंजा भील महाराणा प्रताप का सहयोग करने के लिए तैयार हो गए और वचन दिया कि मेवाड के सभी भील भाई और राजा पूंजा मेवाड की रक्षा के लिए तैयार है। यह सुनकर महाराणा प्रताप ने भील राणा पूंजा को अपने गले से लगा लिया और अपना भाई बना लिया। 


हल्दीघाटी युद्ध में राणा पूंजा भील का योगदान:


हल्दीघाटी का युद्ध 18 जून 1576 ई को मेवाड और मुगलों के बीच हुआ था। जिसमें मेवाड की ओर से प्रमुख योद्धा महाराणा प्रताप था और मुगलो में आमेर का राजा मानसिंह प्रथम था। महाराणा प्रताप के पास कुल 3,400 सैनिक थे। जिसमें 400 भील धनुर्धारी थे। इनके प्रमुख सेनापति राणा पूंजा, भीम सिंह डोइया, रामदास राठौर, रामशाह तोमर, हकीम खान सूरी, भामाशा, ताराचंद, बिदा झाला आदि थे। 


मानसिंह के सेनापति सैय्यद अहमद खान बरहा, सैय्यद हाशिम बरहा, जगन्नाथ कछवाहा, घियास-उड़-दिन अली असफ खान, माधो सिंह कछवाहा, मुल्ला काज़ी खान, राओ लोनकर्ण, मिहतार खान आदि थे जिनके साथ लगभग 5,000 से 10,000 हजार सेना थी। समस्त मेवाड के भील भाइयों और राणा पूंजा ने युद्ध में गुरिल्ला युद्ध प्रणाली अपनाई थी और हल्दीघाटी युद्ध जितने के लिए अपनी अंतिम ताकत भी झोंक दी। 


भीलो की इस भयानक शक्ति से मुगल भी डरकर भागने लगे थे क्योंकि चार सौ धनुर्धारी भीलों के तीर सीधे उनके सीने को छल्ली कर रहे थे। भीलों ने अपने तीर की नोक पर जहर लगाया हुआ था जिससे मुगल सेना की मृत्यु निश्चित थी। इस प्रकार महाराणा प्रताप और राणा पूंजा भील ने अपने सहयोगी दल भील जनजाति की बदौलत हल्दीघाटी के युद्ध में विजय प्राप्त की। 


पूंजा भील को राणा' की उपाधि किसने दी:


हल्दीघाटी के युद्ध में महाराणा प्रताप का साथ राणा पूंजा भील ने दिया था। इसलिए महाराणा प्रताप ने हल्दीघाटी का युद्ध जीतने के बाद राणा पूंजा द्वारा दिए गए योगदान को प्रमाणिकता देने के लिए मेवाड में एक ओर राजपूत होने का संदेश दिया और राजा पूंजा भील को 'राणा' की उपाधि दी। बाद में इन्हें "राणा पूंजा भील" के नाम से जाना गया था। 


राणा पूजा भील राजपूत थे या भील:


दूदा होलंकी राणा पूंजा के पिता मुख्य रूप से से भील थे। इसलिए राणा पूंजा को भीलो का राजा बनाया बनाया गया था और ये भीलो के बीच ही पले-बड़े थे। इन्हें राजपूत की पदवी मिली थी जिसमें इनके नाम के आगे राणा लगाया जाता था इस कारण ये राजपूत कहे जाते थे। लेकिन मूल रूप से राणा पूंजा भील ही थे और भील जनजाति के ही वंशज हुए है।


इस प्रकार राजा पूंजा को "राणा पूंजा भील" की पदवी से जाना गया था। इन्होंने मेवाड़ की रक्षा के लिए अपने अंतिम ताकत भी लगा दी थी लेकिन मेवाड़ को मुगलो के हवाले कदापि नहीं किया और मेवाड़ को जीत लिया। इस कारण राणा पूंजा भील आज भी हर एक भील के दिल में बचे हुए है। 


मै उम्मीद करता हूँ की आपको "राणा पूंजा भील का इतिहास" संबंधी जानकारी अच्छी लगी होगी। यदि आपके यह ऐतिहासिक जानकारी पसंद आए तो अपने दोस्तों में जरूर शेयर करें धन्यवाद 


ये भी पढ़े:

1. मामा बालेश्वर दयाल का जीवन परिचय Biography of Mama Baleshwar Dayal in hindi



COMMENTS

नाम

अबाउट ड्रामा,6,आईपीएल,4,इतिहास,16,इनफार्मेशनल,1,एजुकेशन एंड इनफार्मेशनल,8,कोरियाई ड्रामा,6,जयंती व त्योहार,16,ड्रामा एक्टर बायोग्राफी,3,तमिल मूवी,4,निबंध,9,बायोग्राफी,22,भाषण,17,भाषा ज्ञान,2,मराठी मूवी,1,मूवीज,21,मोबाइल एप्लीकेशन,2,शार्ट एस्से एण्ड स्पीच,4,सी ड्रामा,3,Pakistani Drama,1,
ltr
item
DramaTalk: राणा पूंजा भील का इतिहास || History of Rana Punja Bhil in hindi
राणा पूंजा भील का इतिहास || History of Rana Punja Bhil in hindi
History of Rana Punja Bhil in hindi: राणा पूंजा भील का इतिहास इनका जन्म कब और कहाँ हुआ था? राणा पूंजा भील का जन्म राजस्थान के मेरपुर में हुआ था।
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgFM15SkpfB7k4MaPvN5NQcnf6Dks_Zw_q_AfkFxzlZcUlZXvqeBWU7OhgcyHC5jr3cn_7o4SKcDBq7pl1IwOpJMpSWiBK5xyy5Ul3N9kZLUMnr0UWe0T_MK5EwRVW4L7gYlQjTYTx9KpVP/w320-h201/20210919_135049.jpg
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgFM15SkpfB7k4MaPvN5NQcnf6Dks_Zw_q_AfkFxzlZcUlZXvqeBWU7OhgcyHC5jr3cn_7o4SKcDBq7pl1IwOpJMpSWiBK5xyy5Ul3N9kZLUMnr0UWe0T_MK5EwRVW4L7gYlQjTYTx9KpVP/s72-w320-c-h201/20210919_135049.jpg
DramaTalk
https://www.dramatalk.in/2021/10/History-of-Rana-Punja-Bhil-in-hindi.html
https://www.dramatalk.in/
https://www.dramatalk.in/
https://www.dramatalk.in/2021/10/History-of-Rana-Punja-Bhil-in-hindi.html
true
80465858943812849
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content