Mama baleshwar dayal biography in hindi 2021 मामा बालेश्वर का जन्म कब और कहाँ हुआ था? जीवन परिचय नाम - मामा बालेश्वर दयाल जन्म - सन् 1905 रामनवमी
नमस्कार दोस्तों स्वागत है आपका आज की इस मजेदार जानकारी में दोस्तों आज हम गरीबों के मसीहा मामा बालेश्वर दयाल का जीवन परिचय Biography of Mama Baleshwar Dayal in hindi के बारे में जानने वाले है।
वनवासी जीवन के त्राता,
दलित प्राण के प्राण,
मुक्त समर के अजेय योद्धा।
विदित न जिसे विराम,
समुद्र लेखनी की श्रद्धा का,
श्रद्धा सहित प्रणाम।।
![]() |
Mama Baleshwar Dayal |
मामा बालेश्वर दयाल का परिचय | Mama Baleshwar Dayal biography
1 नाम - मामा बालेश्वर दयाल
2 जन्म - सन् 1905 रामनवमी के दिन
3 जन्म स्थान - उत्तरप्रदेश का इटावा जिला
4 कार्य - समाज-सुधारकर
5 आश्रम - बामनियां (मध्य प्रदेश)
6 मृत्यु - 1998 मध्यप्रदेश का झाबुआ जिला
"हे पूज्य श्री मामा बालेश्वर दयाल,सावित्री माता-कमला बेना, वीरा, रकमा गुरूजी आपकी पवित्र आत्माऐ हमें निरंतर प्रेरणा देती रहेगी वे सीखाती है-
हिफाजत करती है और रास्ता दिखाती हैं। आपको जीवन का स्पर्श पाकर हम अपने को सौभाग्यशाली मानते हैं"
दोस्तों जाती समाज और देश-हमारी जाती हमारा समाज निरंतर आगे बढ़ता रहे। ऐतिहासिक स्वर्णिम पृष्ठ उसी जीवन का स्मरण करता है, जो सूरज जैसा प्रकाश, चन्द्रमा जैसी शीतलता, नदी प्रवाह जैसी सरलता, फूलों की महक और फुलो का माधुर्य का खजाना लुटाता हो, वही जीवन पूजनीय, वन्दनीय और अर्चनीय माना है।
जग के चौथे जूग में जब गरीबों पर अंग्रेजों द्वारा बर्बर अत्याचार हो रहे थे। उसी समय दल के गरीबों के मसीहा स्व श्री मामा बालेश्वर दयाल का जन्म हुआ। जिन्होंने आदिवासी समाज को हार से जीत, कायरता से निडरता, निराशा से आशा, अनेकता से एकता, बैर विरोध से प्रेम प्यार, जगत से भगत और हंसमुख समाज में बदल दिया।
जय हो मामा बालेश्वर दयाल।
मामा बालेश्वर दयाल का जन्म कैसे हुआ? परिचय:
मामा बालेश्वर का जन्म कब और कहाँ हुआ था? आदिवासी भाइयों और बहनों के मसीहा मामा बालेश्वर दयाल का जन्म उत्तरप्रदेश के इटावा जिले में सन् 1905 को रामनवमी के दिन हुआ। इनके पिता जिला स्कूल के प्रधान अध्यापक थे एवं मिजाज से सख्त और कड़े अनुशासन के पक्षधर थे। मामा बालेश्वर दयाल लगभग 14-15 वर्ष के थे तभी ही उनकी माता का देहांत हो गया और शीघ्र ही सौतेली मां का प्रवेश हुआ।
मां की ममता का साया उठते ही पारिवारिक प्रेम भाव की पृष्ठभूमि ही बदल गयी। इन्होंने अपनी जवानी की मनमानी में काॅलेज के अंग्रेज अध्यापक की पिटाई कर दी। नतीजा यह हुआ कि गृह नगर और गृह प्रवेश छोड़कर, एक पत्र मित्र के घर मध्यप्रदेश के उज्जैन जिले के खाचरोद गांव आ गये।
आसरे और आजीविका की तलाश में खाचरोद की जैन पाठशाला में अध्यापक की नौकरी शुरू की और आसपास के आदिवासी आँचलो में व्याप्त भुखमरी से रूबरू होने के लिए दौरे करने चालू कर दिया। इधर मामाजी के पिताजी मामाजी की डिप्टी कलेक्टर की पद स्थापना का पत्र लेकर खाचरोद आये परंतु उन्हें निराश ही लौटना पड़ा।
महान क्रांतिकारी स्व. चन्द्रशेखर आजाद की माता के निमंत्रण पर अजीजराजपुर रियासत के ग्राम भाबरा में कुछेक दिन रहने पर चन्द्रशेखरआजाद की माता से मिलें थांदला के एक स्कूल में मामा जी को प्रधान अध्यापक के पद पर नौकरी मिल गई। वहीं पर उन्होंने एक अंग्रेज पादरी को अंग्रेजी पढ़ाने का दायित्व भी लिया।
इस तरह मामाजी ने ईसाई मिशनरियों के अंतरमन में प्रवेश कर उनकी कार्यशैली का सूक्ष्म अध्ययन किया। सात समन्दर पार से आए अंग्रेज पादरी से निकटता और धर्म-परिवर्तन के लिए उसकी लगन ने मामाजी को आर्य समाज की दिशा दे दी और वे आदिवासी स्त्री-पुरुषों के नए दयानंद और राममोहन राय बन गए उन्हीं दिनों बामनियां में मामाजी ने भील आश्रम की नींव भी रखी और आदिवासी बच्चों को संस्कारित करने का कार्य प्रारंभ किया।
गुजरात के पंचमहल, राजस्थान के बांसवाडा और पश्चिमी मध्यप्रदेश के झाबुआ जिले में मामाजी के समाज-सुधार कार्यक्रम से तत्कालीन राजा-महाराज और जमींदार, जागीरदार, चिंतित हो उठे और उन्हें खत्म करने की योजनाएँ बनने लगी। कई जानलेवा हमले हुए। परंतु मामाजी थे कि टिके रहे। हां, आए दिन की जेल
मामा बालेश्वर दयाल का निरंतर जीवन-वृत:
आदिवासियों को बेगारी से बचाने के लिए उन्हें जनेऊ धारण करवाकर 'ब्राह्मण' बनाने का उपक्रम भी मामाजी ने ही किया। साथ ही उनको शराब छुड़ाने के लिए उनसे ही शराब बंदी के आंदोलन भी चलवाए। आदिवासियों को अपनी ही बुराइयों के खिलाफ युद्ध करने को प्रोत्साहित करना एक अनूठा और अद्वितीय का था, जिसे मामाजी ने बखूबी किया।
पुरी के तत्कालीन शंकराचार्य की मदद से आदिवासियों को जनेऊ पहना, ब्राह्मण बनाकर उन्हें ईसाई बनने से रोकने की नई विद्या ने उन्हें समकालीन समाज में आदरणीय दर्जा दिया, तो शराबबंदी आंदोलन और राजा-महाराजाओं से टकराने के उनके हौसले ने देश के तत्कालीन दिग्गज राजनेताओं नेहरू, आम्बेडकर, लोहिया और जयप्रकाश आदि के सम्पर्क में मामाजी को ला दिया।
चिंतन और तदनुसार कर्म के मान से मामाजी लोहिया से अधिक प्रभावित हुए और इतने हुए कि वर्तमान में समाजवादी आंदोलन के लिए मामाजी एक प्रकाश स्तम्भ है। राजनीति से हर मोड़-मुकाम पर उनकी सहमति व स्वीकृति ली जाती है। आदिवासियों की सेवा से इतर अपने को किसी पद देखने की मामाजी को कभी इच्छा ही नहीं हुई। वे अपने आप से इतने अधिक संतुष्ट हैं कि उन्हें 'आनंदमय' कहा जाता है।
इस प्रकाश पुंज को आज पीढ़ी के सादर प्रणाम।
मामा बालेश्वर दयाल के नारे | Mama Baleshwar Dayal ke Nare
जब तक सूरज चाँद रहेगा,
- मामा जी नाम रहेगा
मामा जी ने काम किया,
- हिन्दुस्तान में नाम किया
गांधीजी ने काम किया,
- हिन्दुस्तान में नाम किया
मामाजी का यह बलिदान,
- याद करेगा हिन्दुस्तान
मामाजी की है ललकार,
- दारू दापा टूटेगा-टूटेगा
जूना जमाना जायेगा,
- नया जमाना आयेगा
मेहनत वाला खायेगा,
- लूटने वाला जायेगा
आदिवासी भाई-भाई,
- हिसाब मांगे पाई-पाई
आदिवासी एकता,
- जिन्दाबाद-जिन्दाबाद
भगत मंडली एकता,
- जिन्दाबाद-जिन्दाबाद
रेल है के रेला है,
- मामाजी का मेला है
जीना है तो लड़ना सीखो,
- कदम-कदम पर बढना सीखो
आदिवासी भाई-भाई,
सब हिल मिल खुश रहो भाई
हमारा नारा,
- भाईचारा
श्री भगवान महादेव ने पूजवा है,
- जूना देव छोड़वा है।
मामाजी की समाधि पर उनके भक्तों द्वारा भुट्टे पूजन:
मक्का की फसल पकने पर मामाजी के अनुयायी भुट्टे लेकर भील आश्रम बामनियां स्थिति मामाजी की समाधि पर चढाने जाते है, उसके बाद ही आदिवासी अपने-अपने राम मंदिरों में सभी प्रांतों के भक्तगण मामाजी की मूर्तियों के स्थान पर शनिवार के दिन श्री सत्यनारायण भगवान की कथा करने के बाद ही नई फसल का उपयोग करते है एवं बाद में परिजनों को भुट्टे, ककड़ी आदि का उपयोग करने देते है।
मामाजी के झण्डे पूजन विधि:
राम मंदिर घाटा-गड़ली तह. कुशलगढ़ जिला बांसवाडा (राज.) पर नाथू महाराज द्वारा एवं राम मंदिर मातासूला पर प्रतिवर्ष कार्तिक कृष्ण एकादशी को मीटिंग रखी जाती हैं। मामाजी के भक्ति के तीन झण्डे लाल-हलपती, हरा, केसरिया की पूजन कर नए झण्डे चढ़ाते है।
ठीक इसी प्रकार धनतेरस के दिन राम मंदिर पावटी पीपलखूंट, राम मंदिर-भूराकुण्ड (डुगलावानी, राम मंदिर बडलीखेड़ा जगलावद जिला प्रतापगढ़ (राज.) एवं जहां-जहां मामाजी की मूर्तियाँ हैं वहां मामाजी के भक्तों द्वारा झण्डे पूजन विधि-विधान से किया जाता है। सभी भक्त अपने-अपने घरों पर इस की एवं मामाजी की तस्वीर (फोटो) लगाकर शाम-सुबह, पूजन भजन कीर्तन करते हैं।
मामा का बामनियां मेला कब लगता है:
कार्तिक शुक्ल बैकुण्ठ चतुर्दशी पर भक्तगण मामाजी बालेश्वर दयाल के भील आश्रम बामनिया बहुत अधिक संख्या में जाते है। यह त्योहार मामाजी द्वारा चालू किया गया है, जो अभी भी प्रतिवर्ष श्रद्धालु मिलते हैं और मामाजी के कार्यों को [जन-जन तक शिक्षा का प्रचार, जल-जंगल, जमीन कामालिका आदिवासी किसान को दहेज, दापा बंद, नशामुक्त आंदोलन, सामाजिक कुरीतियां को बंद करना] आदि-आदि, सिद्धांतों पर गहनता से चर्चा होती है एव उनके कार्यकर्ताओं द्वारा समाज में क्रियान्वित रूप देने के लिए शपथ ली जाती है।
वहां से दूसरे दिन कार्तिक पूर्णिमा को गुरु रकमाजी द्वारा बताया हुआ भाटिया महादेव खमेरा के पास तह. घाटोल जिला बांसवाडा पर बहुत बड़ा भक्त सम्मेलन होता है। भाटिया मेले के बाद वाली अमावस्या को खड़ियावानी में सभी भक्तों द्वारा यह त्योहार बड़े धुमधाम से मनाया जाता है और पाठ पूजन किया जाता है।
(यह त्योहार स्व श्री रामजी महाराज द्वारा बताया गया है, जो नाल-चौकी प्रतापगढ़ से थे। 18 नवम्बर को प्रतिवर्ष राम मंदिर वडलीखेडा में गुरु कमलेश भगत जी द्वारा आम सभा रखी जाती है जिसमें मामाजी के सिद्धांतों पर गहनता से चर्चा होती है।
मामा बालेशवर के भक्तों की पदयात्रा:
21 दिसम्बर को राम मंदिर जगलावद तह. धरियावद जि. प्रतापगढ़ से पद यात्रा प्रारंभ की जाती है रात्रि को विश्राम राम मंदिर पावटी (पीपलखूंट) में किया जाता है। 22 दिसम्बर को सुबह पुनः पदयात्रा प्रारंभ होती है और रात्रि विश्राम मातासूला एवं माही डेम के पास आमली खेडा में।
23 दिसम्बर को पदयात्रियो का विश्राम घाटा गड़ली कुशलगढ एवं संगेसरी। 24 दिसम्बर को पद यात्रियों का रात्रि विश्राम बड़ी सरवा तथा 25 दिसम्बर की शाम को भील आश्रम बामनिया तह. पेटलावद जिला झाबुआ (म.प्र.) पहुँचती है, रात्रि में मामाजी की समाधि पर आम सभा होती है, जिसमें मामाजी के भजन-कीर्तन, भाषण आदि पर मामाजी के साथी वक्ताओं द्वारा किया जाता है।
मामाजी को श्रद्धांजलि कैसे दी जाती है:
26 दिसम्बर को प्रातः मामाजी की समाधि पर पुण्यतिथि के सुअवसर पर श्रद्धा सुमन अर्पित कर दिन में मामाजी के राजनीतिज्ञों द्वारा आम सभा प्रतिवर्ष होती है।
मामा बालेश्वर दयाल के शब्दों में:
जब देश के विभिन्न अंचलों में व्यापक निराशा का फैलाव हो तब समझू युवा पीढ़ी के पुरुषार्थ की परख होती है। वास्ते नोट करें कि निराशा के अंधकार के ओजस्वी अपराजेय कर्तव्य भी होते है पर कर्तव्य करने वाले में जोखिम खिलाड़ी के मस्ताने मन का अखूत भंडार होना भी लाजमी है।
- मामा बालेश्वर दयाल
इन सभी तथ्यों को ध्यान में रखते हुए मैं उम्मीद करता हूँ की आपको "मामा बालेश्वर दयाल का जीवन परिचय और उनके भक्तों से जुड़ी जानकारी पसंद आई होगी। और हां यदि आप मामा बालेश्वर दयाल के सच्चे भक्त हो जानकारी को ज्यादा से ज्यादा शेयर करें ताकि दूसरे सभी भक्तगण मामा बालेश्वर दयाल की जीवन शैली को जान सके और उनके सिद्धांतों को जाने, समझे और अपनी जीवन में एक सही और सटीक दिशा प्राप्त करे।
धन्यवाद।
जय हो। मामा बालेश्वर दयाल की।
ये भी पढ़े:
भगवान विश्वकर्मा जयंती पर भाषण Vishwakarma jayanti speech in hindi
माता कर्मा बाई जयंती Karma Bai Jayanti
खूब रचा मामा जी के सन्दर्भ में संभव हो तो छोटी सी पुस्तक बना दें जिससे आमजनों तक पहुच सके. बधाई.
जवाब देंहटाएंखूब रचा मामा जी के विषय में हो सके तो छोटी पुस्तक बना दें इससे आमजनों तक पुहुँच सके. बधाई
जवाब देंहटाएं